एक चश्मा प्लस (+) का
हो गया है जीवन भी
जब भी लगाया
नये सिरे से
निगाहों को अभ्यस्त करना पड़ा,
कई बार धुँधली इन आकृतियाँ से
मन की अकबकाहट
चेहरे पर साफ़ उभर आती
एक प्रयास देखने का
कटे हुये शीशे में नज़र को टिकाना
या फिर छोटे से गोले में
देखना निकट दृश्य !!
.....
चश्मा माइनस (-)
सब कुछ दूर बस दूर
नज़दीक में देखो तो लगता
रास्ते ऊपर - नीचे कब हो गये :)
सँभल के रखते कदम
ऐसे ही जिंदगी और रिश्तों में भी
आ जाती है समय के साथ दूरियाँ
इस माइनस (-) दूरी के लिए
नहीं है कोई विशेषज्ञ
ना ही कोई चश्मा
इन फ़ासलों को कम करने के लिए
जिंदगी की किताब को पढ़ने के लिये
हर किसी को लगाना पड़ता है चश्मा
उम्र के किसी न किसी दौर में :)
....
हो गया है जीवन भी
जब भी लगाया
नये सिरे से
निगाहों को अभ्यस्त करना पड़ा,
कई बार धुँधली इन आकृतियाँ से
मन की अकबकाहट
चेहरे पर साफ़ उभर आती
एक प्रयास देखने का
कटे हुये शीशे में नज़र को टिकाना
या फिर छोटे से गोले में
देखना निकट दृश्य !!
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चश्मा माइनस (-)
सब कुछ दूर बस दूर
नज़दीक में देखो तो लगता
रास्ते ऊपर - नीचे कब हो गये :)
सँभल के रखते कदम
ऐसे ही जिंदगी और रिश्तों में भी
आ जाती है समय के साथ दूरियाँ
इस माइनस (-) दूरी के लिए
नहीं है कोई विशेषज्ञ
ना ही कोई चश्मा
इन फ़ासलों को कम करने के लिए
जिंदगी की किताब को पढ़ने के लिये
हर किसी को लगाना पड़ता है चश्मा
उम्र के किसी न किसी दौर में :)
....
कवि ह्रदय में डॉक्टरी घुसपैठ :-)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया !!!!
सस्नेह
अनु
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीया-
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव
चश्मा लगाना अच्छा नहीं लगता पर लगाना ही पड़ता है किसी न किसी दौर में..भाव पूर्ण पंक्तियाँ..
जवाब देंहटाएंसुंदर बिंब, बहुत बेहतरीन.
जवाब देंहटाएंरामराम.
अमूमन...
जवाब देंहटाएंजब रिश्ते क़रीब होते हैं... '-' का चश्मा चढ़ता है...
जब रिश्ते दूर होने लगते हैं... '+' का चश्मा चढ़ जाता है..
सही वक़्त पर सही चिन्ह का चश्मा लगवाती है ये ज़िंदगी भी... :)
सादर
सुन्दर नज़रिया देखने का.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.....!!
जवाब देंहटाएंसच जिंदगी और रिश्ते में भी समय के साथ आ आती हैं दुरिया ......
बहुत सटीक विश्लेषण .....वाह!
जवाब देंहटाएंबधाई !
जिंदगी की किताब होती ही ऐसी है ....उसे पढ़ने के लिए न जाने कितने जतन करने पड़ते हैं ...फिर भी ?
जवाब देंहटाएंसुन्दर सटीक प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंवाह बहत खूब रूपक तत्व का बहतरीन अभिनव समावेश किया है रचना में।
सुंदर विवेचन लिए भाव.....
जवाब देंहटाएंउपमाओं के ज़रिये सार्थक सन्देश देती हुई बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबस ज़िन्दगी कि इतनी समझ ही तो बनानी है!
बहुत सुन्दर सीमा दीदी।
सादर
मधुरेश
बहुत सुंदर सार्थक सन्देश देती उत्कृष्ट रचना ....!
जवाब देंहटाएं============================
नई पोस्ट-: चुनाव आया...
ज़िंदगी और रिश्तों को देखने के लिए यह चश्मा स्वतः ही लगा देता है ऊपर वाला ...सार्थक भाव लिए सुंदर रचना॥:)
जवाब देंहटाएंZindagi ke plus minus ko jis bhavnaatmakata se joda hai wo sachmuch tareef ke kabil hai!! Bahut khoob!!
जवाब देंहटाएंवाह ! अद्भुत ! चश्मे के + और - पर इतनी सुन्दर रचना । वाह !
जवाब देंहटाएंवक्त के साथ लगता चश्मा..वाह! क्या सुन्दर परिभाषा..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंऐसे ही जिंदगी और रिश्तों में भी
जवाब देंहटाएंआ जाती है समय के साथ दूरियाँ
इस माइनस (-) दूरी के लिए
नहीं है कोई विशेषज्ञ
ना ही कोई चश्मा ....बिल्कुल सही
इन फ़ासलों को कम करने के लिए
जवाब देंहटाएंजिंदगी की किताब को पढ़ने के लिये
हर किसी को लगाना पड़ता है चश्मा
उम्र के किसी न किसी दौर में :)
...नहीं है छुटकारा इस चश्मे से...एक गहन अभिव्यक्ति...
वाह, चश्मे से जीवनदर्शन।
जवाब देंहटाएंये चश्मा हमें खुद ही बनाना पड़ता है , कोई और नहीं बता सकता कितना माईनस कितना प्लस !
जवाब देंहटाएंरिश्तों को सहेजने की सीख देती कविता !
जीवन को चश्मे की नज़र से देखा है आपने ... जीवन दर्शन स्पष्ट है ओ आँखें बंद होने पे भी दिखता है ...
जवाब देंहटाएंजिंदगी और रिश्ते में भी समय के साथ आ आती हैं दुरिया
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी को उम्र के चश्मा के साथ ही नज़र का चश्मा भी लग जाता है... स्पष्ट या अस्पष्ट... सब कुछ. भावपूर्ण, बधाई.
जवाब देंहटाएंअलग अंदाज़ ...
जवाब देंहटाएंवाह क्या बात! बहुत ख़ूब!
जवाब देंहटाएंइसी मोड़ से गुज़रा है फिर कोई नौजवाँ और कुछ नहीं
कल्पना का अप्रतिम सौंदर्य...
जवाब देंहटाएंचश्मे के प्लस-माइनस से क्या दर्शन खोजा है आपने। लाजवाब।
प्लस और माईनस का चश्मा और रिश्ते .... अद्भुत बिम्ब प्रयोग किया है ....
जवाब देंहटाएंजब प्रिंट डिजिटल मीडिया नहीं था तो आँखों का उपयोग भी कम था...अब तो दिन में सूर्य देव हैं तो रात में लाइट देवी...जितना मर्ज़ी देखिये...भला हो डॉक्टरों का जो हमारी इस बीमारी का इलाज़ भी किये दे रहे हैं...चश्मा अपरिहार्य होता जा रहा है...उम्र के किसी न किसी दौर में...
जवाब देंहटाएंगजब
जवाब देंहटाएं