ना शिकायत मुझे तुमसे है,
ना ही समय से, ना किसी और से
बस है तो अपने आप से
हर बार हार जाती हूँ तुम से
तो झगड़ती हूँ मन से
रूठकर मौन के एक कोने में
डालकर आराम कुर्सी
झूलती रहती अपनी ही मैं के साथ !
...
कभी खल़ल डालने के वास्ते
आती हैं हिचकियाँ लम्बी-लम्बी
गटगट् कर पी लेती हूँ पानी का ग्लास
एक ही साँस में
सूखता हलक़ तर हो चुका होता है
पर पलटकर तुम्हारी तरफ़
मैं निहारती भी नहीं
ज़बान आतुर है फिर कुछ कहने को
कंठ मौन के साये में
शब्दों को चुनता है मन ही मन
फिर नि:शब्द ही रहकर
कह उठता है
तुम कहने के पहले सोचती क्यूँ नहीं !!
....
.....तुम में संयम नहीं होता तो
भला कैसे रहती
तुम दंत पंक्तियों के मध्य
यूँ सुरक्षित,
तुमसे मुझे इतना ही कहना है
मेरा सर्वस्व तुम से है
और मेरी ये चाहत तुम्हारे लिये है
तुम सहज़ रहो,
कुछ भी कहने से पहले
अपनी सोच को दिशा दो तब कहो
विवेक के सानिध्य में अानंद है
आनंद में सुख है
मैं नहीं चाहती कि तुम इस सुख से वंचित रहो
मेरे रहते तुम्हें कोई ये कहे
तुम कहने के पहले कुछ सोचती क्यूँ नहीं :)
ना ही समय से, ना किसी और से
बस है तो अपने आप से
हर बार हार जाती हूँ तुम से
तो झगड़ती हूँ मन से
रूठकर मौन के एक कोने में
डालकर आराम कुर्सी
झूलती रहती अपनी ही मैं के साथ !
...
कभी खल़ल डालने के वास्ते
आती हैं हिचकियाँ लम्बी-लम्बी
गटगट् कर पी लेती हूँ पानी का ग्लास
एक ही साँस में
सूखता हलक़ तर हो चुका होता है
पर पलटकर तुम्हारी तरफ़
मैं निहारती भी नहीं
ज़बान आतुर है फिर कुछ कहने को
कंठ मौन के साये में
शब्दों को चुनता है मन ही मन
फिर नि:शब्द ही रहकर
कह उठता है
तुम कहने के पहले सोचती क्यूँ नहीं !!
....
.....तुम में संयम नहीं होता तो
भला कैसे रहती
तुम दंत पंक्तियों के मध्य
यूँ सुरक्षित,
तुमसे मुझे इतना ही कहना है
मेरा सर्वस्व तुम से है
और मेरी ये चाहत तुम्हारे लिये है
तुम सहज़ रहो,
कुछ भी कहने से पहले
अपनी सोच को दिशा दो तब कहो
विवेक के सानिध्य में अानंद है
आनंद में सुख है
मैं नहीं चाहती कि तुम इस सुख से वंचित रहो
मेरे रहते तुम्हें कोई ये कहे
तुम कहने के पहले कुछ सोचती क्यूँ नहीं :)
अपनी सोच को दिशा दो तब कहो
जवाब देंहटाएंविवेक के सानिध्य में अानंद है
आनंद में सुख है
मैं नहीं चाहती कि तुम इस सुख से वंचित रहो
मेरे रहते तुम्हें कोई ये कहे
तुम कहने के पहले कुछ सोचती क्यूँ नहीं?
बहुत सुन्दर आत्म चिंतन |
नई पोस्ट फूलों की रंगोली
नई पोस्ट आओ हम दीवाली मनाएं!
अपनों से कुछ कहने से पहले सोचना पड़े ... ये हालात ठीक नहीं ...
जवाब देंहटाएंहां आत्मचिंतन जरूरी है ...
अभी तो सोच रहें हैं ...... लिखने के लिए बाद में आते हैं :)
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति है आदरणीया -
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार-
बहुत उम्दा भाव .....
जवाब देंहटाएंखुबसूरत प्रस्तुती....
जवाब देंहटाएंKuchh kahne se pahle sochne me banaawat hoti hai.. Haan dil ki baat bina laag lapet ke kah dene me kasht bhi bahut hain.. Ab faisala to vyaktigat ho gaya.
जवाब देंहटाएंKavita pasand aayi!!
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंAmazing... bahut sundar bhav...
जवाब देंहटाएंमन छूते अहसास ......
जवाब देंहटाएंअहसास ..महसूस कर लिया ...सो लिख दिया ......अब सोचना कैसा ?
शुभकामनायें!
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (08-11-2013) को "चर्चा मंचः अंक -1423" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
जवाब देंहटाएंकहने के पहले सोचा तो कहा न जायगा...मगर हाँ कडवाहट उगलने से बचने का प्रयास अवश्य हो !!!
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना.
सस्नेह
अनु
बहुत सुन्दर अहसास
जवाब देंहटाएंआपकी इस उम्दा प्रस्तुति को अंक ४१ शुक्रवारीय चौपाल http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/ मैं शामिल किया गया हैं कृपया अवलोकन हेतु अवश्य पधारे ..धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंहम ऐसी ही दुनियाँ में जी रहे हैं जहाँ अपनों के बीच बोलने से पहले भी खूब सोचना पड़ता है। जब भी हम अकेले होते हैं यह बेबसी बहुत खलती है। इस बेबसी को खूब अभिव्यक्त किया है आपने।
जवाब देंहटाएंतुम सहज़ रहो,
जवाब देंहटाएंकुछ भी कहने से पहले
अपनी सोच को दिशा दो तब कहो
विवेक के सानिध्य में अानंद है
आनंद में सुख है
मैं नहीं चाहती कि तुम इस सुख से वंचित रहो
मेरे रहते तुम्हें कोई ये कहे ...
बहुत बढ़िया आदरणीया सदा जी
अपनों से बात करने में सोचना क्या ,,,
जवाब देंहटाएंखुलकर बातें हों तो अच्छा
लेकिन कहीं से बातों में कड़वाहट ना घुली हो इसका ध्यान होना चाहिए
हमेशा की तरह बेमिसाल रचना
जवाब देंहटाएंकई बार हो जाता है
बोल कर सोचती
कुछ कम बोल गई
कुछ ज्यादा बोल गई
~~
सुन्दर अभिव्यक्त रचना।।
जवाब देंहटाएंनई कड़ियाँ : अपने ब्लॉग और वेबसाइट को सर्च इंजन में फ्री सबमिट करे।
एशेज की कहानी
.तुम में संयम नहीं होता तो
जवाब देंहटाएंभला कैसे रहती
तुम दंत पंक्तियों के मध्य
यूँ सुरक्षित,
तुमसे मुझे इतना ही कहना है
मेरा सर्वस्व तुम से है
और मेरी ये चाहत तुम्हारे लिये है
तुम सहज़ रहो,
कुछ भी कहने से पहले
अपनी सोच को दिशा दो तब कहो
विवेक के सानिध्य में अानंद है
आनंद में सुख है
मैं नहीं चाहती कि तुम इस सुख से वंचित रहो
मेरे रहते तुम्हें कोई ये कहे
तुम कहने के पहले कुछ सोचती क्यूँ नहीं :)
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कभी कभी सोचना जरुरी होता है जो हम अक्सर भूल जाते हैं, उम्दा रचना। बधाई।
भाव पूर्ण अंत: को झकझोरती
जवाब देंहटाएंह्रदय से उकेरे सुन्दर भाव.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही बढ़िया |
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत अंदाज़ ... बहुत उम्दा अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना...
जवाब देंहटाएंकुछ भी कहने से पहले
जवाब देंहटाएंअपनी सोच को दिशा दो तब कहो
विवेक के सानिध्य में अानंद है
आनंद में सुख है
मैं नहीं चाहती कि तुम इस सुख से वंचित रहो
मेरे रहते तुम्हें कोई ये कहे
तुम कहने के पहले कुछ सोचती क्यूँ नहीं :)
bahut hi sunder aur snehil bhav
rachana
वाह बहुत ही बढ़िया भावभिव्यक्ति...बहुत खूब सदा जी :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर,,अच्छा लगा आपको पढ़कर ..
जवाब देंहटाएंपिछले २ सालों की तरह इस साल भी ब्लॉग बुलेटिन पर रश्मि प्रभा जी प्रस्तुत कर रही है अवलोकन २०१३ !!
जवाब देंहटाएंकई भागो में छपने वाली इस ख़ास बुलेटिन के अंतर्गत आपको सन २०१३ की कुछ चुनिन्दा पोस्टो को दोबारा पढने का मौका मिलेगा !
ब्लॉग बुलेटिन इस खास संस्करण के अंतर्गत आज की बुलेटिन प्रतिभाओं की कमी नहीं 2013 (6) मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत ही सही कहा बोलने से पहले सोचते क्यों नहीं
जवाब देंहटाएंव्यक्त करने का तरीका बेहद खूबसूरत .......
काफी अपनत्व के साथ अधिकार जमाता हुआ सा कविता का सुर।। सुंदर भावपूर्ण....
जवाब देंहटाएंबोलने से पहले अगर सोचने लग जाएँ तो बोल ही नहीं पाएँ .... ज़ुबान भला कैसे सोचे ? :)
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