रूहों को लिबास बदलना
खूब भाता है
बिना किसी गम के हँसते-हँसते
बदल लेती हैं ये बिना किसी को खबर किये
लिबास अपना
...
फिर रोकर ये बताना चाहती हैं दुनिया को
इसमें हमारी कोई रज़ा न थी
हम तो कठपुतलियाँ हैं बस
जो भी ये करिश्में करता है
वो ऊपरवाला है !!!
खूब भाता है
बिना किसी गम के हँसते-हँसते
बदल लेती हैं ये बिना किसी को खबर किये
लिबास अपना
...
फिर रोकर ये बताना चाहती हैं दुनिया को
इसमें हमारी कोई रज़ा न थी
हम तो कठपुतलियाँ हैं बस
जो भी ये करिश्में करता है
वो ऊपरवाला है !!!
वाह रूह की बात कह दी आपने तो
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार उम्दा प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंमेरा दूर जिन्दगी से
कोई सरोकार नहीं
किसी के जिन्दगी और मौत की
मैं जिम्मेदार नहीं
ऐ जिन्दगी
तेरा एतबार नहीं ,,,,,
recent post: बसंती रंग छा गया
bahut hi sundar abhiwykti ...
जवाब देंहटाएंजिन्दगी का फलसफा बेहद उलझा है , गुथ्थियाँ सुलझती रहनी चाहिए . अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंसब उसी के हाथ है.....
जवाब देंहटाएंइसका रहस्य तो ऊपरवाला ही जानता है ......
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
इतनी बड़ी बात इतने सरल शब्दों में ..... वाह !!!
जवाब देंहटाएंwah ! bahut badi baat keh di apne
जवाब देंहटाएंगहन .....उत्तम अभिव्यक्ति ....!!
जवाब देंहटाएंsundar darshnik abhivykti
जवाब देंहटाएंअभिनव शब्दों का सुन्दर संयोजन ...!!
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की शुभकामनाएँ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (16-02-2013) के चर्चा मंच-1157 (बिना किसी को ख़बर किये) पर भी होगी!
--
कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि चर्चा में स्थान पाने वाले ब्लॉगर्स को मैं सूचना क्यों भेजता हूँ कि उनकी प्रविष्टि की चर्चा चर्चा मंच पर है। लेकिन तभी अन्तर्मन से आवाज आती है कि मैं जो कुछ कर रहा हूँ वह सही कर रहा हूँ। क्योंकि इसका एक कारण तो यह है कि इससे लिंक सत्यापित हो जाते हैं और दूसरा कारण यह है कि किसी पत्रिका या साइट पर यदि किसी का लिंक लिया जाता है उसको सूचित करना व्यवस्थापक का कर्तव्य होता है।
सादर...!
बसन्त पञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
सूचनार्थ!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अजीब सा है,पर है ...
जवाब देंहटाएंआती बास लिबास से, अथवा खुश्बू तेज ।
जवाब देंहटाएंरखती नहीं लगाव यह, क्यूँकर रखे सहेज ।
क्यूँकर रखे सहेज, भेजिए लानत तन पर ।
काम क्रोध मद मोह, रहा ढो कब से रविकर ।
समझे रूह दुरूह, दिया-बाती बुझ जाती ।
दिया लिया सब शून्य, बदल के कपड़े आती ।।
रूह तो झूट नहीं बोलती, शायद सच कह रही है . वसंत पंचमी की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंLatest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
बसन्त पंचमी की हार्दिक शुभ कामनाएँ!बेहतरीन अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंsundar prastuti...
जवाब देंहटाएंhttp://kahanikahani27.blogspot.in/
इसमें हमारी कोई रज़ा न थी
जवाब देंहटाएंहम तो कठपुतलियाँ हैं बस
sach to yahi hai ....!!
बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......
जवाब देंहटाएंहाँ ... सच में ..
जवाब देंहटाएंसब कुछ निश्चित होता है .... हम तो निमित्त मात्र हैं ...
जवाब देंहटाएंaarop lgana jyada aasan hota hai naa...aur khuda par to aur bi aasaan...
जवाब देंहटाएंhttp://kumarkashish.blogspot.in/2013/02/blog-post_15.html
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
पहला वाला बहुत अच्छा।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंयही विरोधाभास है ज़िन्दगी का सौगात है ,औकात है .
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबिना किसी को खबर किये हम जान गवांये जाते हैं !
जवाब देंहटाएंजो कुछ बचा सके थे अपना तुम्हें छोड़ कर जाते हैं !
ये तो ऊपर वाला ही जाने ...वो क्या सोचता है और क्या करता है ?
जवाब देंहटाएंकरिश्मा तो ऊपर वाले का ही होता है ... रूह तो बस चलती है उसके अनुसार ...
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएं