बँटवारे की ज़मीन पर
जब भी मैने
प्रेम का बीज़ बोया
जाने क्यूँ
वह अंकुरित नहीं हुआ ..
बार-बार वही प्रयास
कभी बीज अंकुरित होता तो
पौधा पनप नहीं पाता
उसकी देख-रेख
करने के लिए जो परिधि निश्चित थी
उसके आगे जाने की
इज़ाजत मुझे नहीं थी ...
.............
मुझे यकीन है
मेरी हथेली पर जितनी भी रेखाएं हैं
उनमें तेरा नाम जरूर होगा
ये बात और है
इसे पढ़ना
हम दोनो को नहीं आता ....
परिधि के दायरे में फल फूल नहीं पाता प्रेम का पौधा ... दोनों क्षणिकएं लाजवाब
जवाब देंहटाएंमेरी हथेली पर जितनी भी रेखाएं हैं
जवाब देंहटाएंउनमें तेरा नाम जरूर होगा
ये बात और है
इसे पढ़ना
हम दोनो को नहीं आता ....
वाह - क्या बात है !
हाथ के रेखाएं पढ़ी जा सकें तो जीवन कितना आसान नहीं हो जायगा ... कुछ बातें ऊपर वाले ने अपने पास रक्खी हैं ... इंसान बस तुक्के मारता रहता है ...
जवाब देंहटाएंमुझे यकीन है
जवाब देंहटाएंमेरी हथेली पर जितनी भी रेखाएं हैं
उनमें तेरा नाम जरूर होगा
ये बात और है
इसे पढ़ना
हम दोनो को नहीं आता .... bahut badhiya ..bahut sahi ..
maamlaa dil kaa ho to
जवाब देंहटाएंanpadh bhee samajh jaataa
पौधे को पनपने के लिये तो खुला आकाश चाहिये होता है फिर प्रेम तो कोई बंधन नही स्वीकारता………बेहद उम्दा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंलाजवाब..!
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.in
शुक्रवार के मंच पर, तव प्रस्तुति उत्कृष्ट ।
जवाब देंहटाएंसादर आमंत्रित करूँ, तनिक डालिए दृष्ट ।।
charchamanch.blogspot.com
बंटवारे का दर्द उस बीज को सुखाता गया
जवाब देंहटाएंसशक्त और प्रभावशाली रचना.....
जवाब देंहटाएंये लकीरें जितनी कम हों...जमीन पर या हथेली पर...जिंदगी उतनी आसन हो...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत एहसास.. एक पुराना शेर याद आ गया:
जवाब देंहटाएंअपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको,
मैं हूँ तेरा, तू नसीब अपना बना ले मुझको!!
या फिर जानबूझ कर पढना नहीं चाहता है.. गूढ़..किन्तु अति सुन्दर..
जवाब देंहटाएंमेरी हथेली पर जितनी भी रेखाएं हैं
जवाब देंहटाएंउनमें तेरा नाम जरूर होगा
ये बात और है
इसे पढ़ना
हम दोनो को नहीं आता .
.....लकीरों की भाषा हम कहाँ समझ पाते है...दोनों ही क्षणिकाएं लाज़वाब...
काश!!! ये हाथों की लकीरें हमसे पढ़ी जाती ,
जवाब देंहटाएंतो शायद परिधी से बाहर भी एक नई जिन्दगी गढ़ी जाती...
बहुत ही सुन्दर भाव| धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंमुझे यकीन है
जवाब देंहटाएंमेरी हथेली पर जितनी भी रेखाएं हैं
उनमें तेरा नाम जरूर होगा
ये बात और है
इसे पढ़ना
हम दोनो को नहीं आता ....
Bahut hee gaharee baat kah dee!
मुझे यकीन है
जवाब देंहटाएंमेरी हथेली पर जितनी भी रेखाएं हैं
उनमें तेरा नाम जरूर होगा
ये बात और है
इसे पढ़ना
हम दोनो को नहीं आता .... bahut hi badhiya man ko chhoone wali rachna .
खूबसूरत अह्साशों से भरी बेहतरीन कविता प्रस्तुत की है आपने
जवाब देंहटाएंसार्थक और सशक्त रचना!
जवाब देंहटाएंमुझे यकीन है
जवाब देंहटाएंमेरी हथेली पर जितनी भी रेखाएं हैं
उनमें तेरा नाम जरूर होगा
ये बात और है
इसे पढ़ना
हम दोनो को नहीं आता ....
Wah!!! Behut sundar....Behtareen panktiyab
http://www.poeticprakash.com/
पीड़ा धरती भी समझती है..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया,सार्थक सशक्त अच्छी रचना .....
जवाब देंहटाएंMY NEW POST...आज के नेता...
बेहद shashakt रचना ,भावपूर्ण बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सदा जी...
जवाब देंहटाएंदोनों दिल को छू गयीं...
सस्नेह.
एक सुन्दर गूढ़ रचना !
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंlaajavaab... prastuti sada ji, dono hi shranikaayen bahut hi umdaa hain.
जवाब देंहटाएंमुझे यकीन है
जवाब देंहटाएंमेरी हथेली पर जितनी भी रेखाएं हैं
उनमें तेरा नाम जरूर होगा
ये बात और है
इसे पढ़ना
हम दोनो को नहीं आता .... ati sundar
बहुत सुन्दर ,
जवाब देंहटाएंबधाई
सीमाओं में बँटी प्रेम भावना और विश्वास की अनपढ़ता बहुत खूबसूरती से ब्यान हुई है. सुदर.
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
जवाब देंहटाएंक्या कहने
मुझे यकीन है
जवाब देंहटाएंमेरी हथेली पर जितनी भी रेखाएं हैं
उनमें तेरा नाम जरूर होगा
ये बात और है
इसे पढ़ना
हम दोनो को नहीं आता ....
bahut sunder kshanika
badhai
rachana
अति सुंदर.
जवाब देंहटाएंबहूत सुंदर गहरे भाव व्यक्त करती रचना है....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ती...
उसकी देख-रेख
जवाब देंहटाएंकरने के लिए जो परिधि निश्चित थी
उसके आगे जाने की
इज़ाजत मुझे नहीं थी ...
...
मुझे भी उससे आगे जाने की इज़ाज़त नहीं है ...कितनी अपनी से बात कही है आपने सदा जी !!