मन ही मन मैं,
तेरा नाप लेकर,
बनाती रही तेरे,
तन के कपड़े
नहीं ये छोटा होगा,
नहीं ये होगा बड़ा,
करती खुद से जाने
कितने झगड़े
तन के कपड़े . . . ।
तू गोरी होगी,
या सांवरी
मैं भी बावरी बन
सजाती रही गुडि़या पे
तेरे वो कपड़े
तन के कपड़े . . . ।
झलक तेरी आंखों में
लेकर सोती तो,
ख्वाबों में फिरती
तुझको पकड़े-पकड़े
तन के कपड़े . . . ।
मैं अपना बचपन
फिर से जी लूंगी
तू आ जाएगी तो
मिट जाएंगे सारे झगड़े
तन के कपड़े . . . ।