बुधवार, 27 दिसंबर 2017

लेखकों का गोत्र !!!!

मन में विचारों की आँधी चली,
लेखक का जीवन खंगाला गया
धर्म की पड़ताल हुई
गोत्र पर भी चर्चा हुई
तो पाया बस इतना ही कि
सारे लेखकों का
गोत्र एक ही होता है
धर्म उनका सदा लेखन होता है !
....
मित्रता कलम से होती है
जो अपनी नोक़ से
कभी वार करती है तो
कभी बस फैसला आर-पार करती है
हर युग में लेखक
अपने धर्म का बड़ी निष्‍ठा से
पालन करता रहा
सच को सच, झूठ को झूठ, लिखता रहा
जाने कितनो का मार्गदर्शक बन
मन का मन से वो
संवाद करता रहा !!
....
कोरे पन्‍नों पर होती कभी
अंतस की पीड़ा
कभी जीवन की छटपटाहट तो
कभी बस वो हो जाता साधक
जागता रातों को
शब्‍दों का आवाह्न करता
पर धर्म से अपने कभी न डिगता
किसी पात्र को जीता है जब कोई लेखक
बिल्‍कुल उस जैसा हो जाता है
ना नर होता है नारी
वो तो होता है बस लेखक
जो विचारों की अग्नि में देता है आहुति
अपने दायित्‍वों की
लेखनी को अपनी पावन करता है
जब भी किसी की पीड़ा को
शब्‍दों से अपने वो जीवनदान देता है !!!
... 

4 टिप्‍पणियां:

  1. लेकिन यहाँ भी होता है गोत्र और सगोत्री भी होते हैं :)

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मिर्जा ग़ालिब और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. सदा जी, लोखकों के गोत्र पर शायद ही किसी ने विचार किया हो...अद्भुत प्रस्‍तुति

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....