फल्गु के तट पर
पिण्डदान के व़क्त पापा
बंद पलकों में आपके साथ
माँ का अक्स लिये
तर्पण की हथेलियों में
श्रद्धा के झिलमिलाते अश्कों के मध्य
मन हर बार
जाने-अंजाने अपराधों की
क्षमायाचना के साथ
पितरों का तर्पण करते हुये
नतमस्तक रहा !
...
पिण्डदान करते हुये
पापा आपके साथ
दादा का परदादा का
स्मरण तो किया ही
माँ के साथ
नानी और परनानी को
स्मरण करने पे
श्रद्धा के साथ गर्व भी हुआ
ये 'गया' धाम निश्चित ही
पूर्वजों के अतृप्त मन को
तृप्त करता होगा !!
...
रिश्तों की एक नदी
बहती है यहाँ अदृश्य होकर
जिसे अंजुरि में भरते ही
तृप्त हो जाते है
कुछ रिश्ते सदा-सदा के लिये !!!!
....
मन से निकले बेहतरीन भाव ....
जवाब देंहटाएंवाह... समर्पण के भाव लिए पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंलाज़वाब
जवाब देंहटाएंरिश्तों की एक नदी
बहती है यहाँ अदृश्य होकर
जिसे अंजुरि में भरते ही
तृप्त हो जाते है
कुछ रिश्ते सदा-सदा के लिये !!!!
तबी तो गया के घाट पर लोग पिण्ड दान की रस्म निभाते हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11-9-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा -1733 में दिया गया है ।
जवाब देंहटाएंआभार
मन के भाव ही सबसे बड़ा अर्पण ....सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंरब का इशारा
अपने तो तृप्त हो जाते हैं याद करने से ही ... फिर गया जैसे धाम जा कर उनकी याद ये बड़ा समर्पण कहाँ ...
जवाब देंहटाएंहमारे अस्तित्व के प्रमाण हमारे पितर ही हमें सत्यम -ज्ञानम् -अनन्तं का बोध कराते हैं। शुक्रिया आपकी टिप्पणियों के लिए। भाव विह्वल करती श्रद्धा संसिक्त अंजुरी प्रस्तुत की है आपने।
जवाब देंहटाएंप्रेम रूपी नदी में यादों की डुबकियां
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण कविता :)
रंगरूट
रिश्तों की एक नदी
जवाब देंहटाएंबहती है यहां अदृश्य होकर
जिसे अम्जुलि में भरते ही
्तृप्त हो जाते हैं सदा-सदा के लिये
जाने कहां चले जाते हैं जाने वाले?
खुबसूरत अभिवयक्ति..
जवाब देंहटाएंरिश्तों के प्रवाह को ,हमारी भी अंजलि-भर श्रद्धा अर्पण !
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिवयक्ति..
जवाब देंहटाएंरिश्तों की एक नदी
जवाब देंहटाएंबहती है यहाँ अदृश्य होकर
जिसे अंजुरि में भरते ही
तृप्त हो जाते है
कुछ रिश्ते सदा-सदा के लिये
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।।।
सामयिक, भावपूर्ण और सशक्त!!
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी...
जवाब देंहटाएंवाह...सुन्दर और सार्थक पोस्ट...
जवाब देंहटाएंसमस्त ब्लॉगर मित्रों को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं...
नयी पोस्ट@हिन्दी
और@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ
रिश्तों की एक नदी
जवाब देंहटाएंबहती है यहाँ अदृश्य होकर
जिसे अंजुरि में भरते ही
तृप्त हो जाते है
कुछ रिश्ते सदा-सदा के लिये !!!!
बहुत सुंदर पंक्तियाँ...
रिश्तों की एक नदी
जवाब देंहटाएंबहती है यहाँ अदृश्य होकर
जिसे अंजुरि में भरते ही
तृप्त हो जाते है
कुछ रिश्ते सदा-सदा के लिये !!!!
...दिल को छूती पंक्तियाँ...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...