शोर में दबा सन्नाटा
कसमसा कर बोला
अपनी मैं पर जब आऊँगा
तुम सब होगे मेरी प़नाह में
बोलती सबकी बंद होगी
तब मैं और सिर्फ मेरी ख़ामोशी बोलेगी !
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खामोशी के साये में
मन ने जाने कितने सबक लिए
कितने संकल्पों की सीढि़याँ चढ़ी
कितनी उम्मीदों के
टूटने का रंज मनाया
बिखरती जिंदगी को
संघर्ष के रास्तों का आईना दिखाया !!
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सवालों के कटघरे में
जिंदगी ने जब भी पक्षपात किया
खून के रिश्तों की दुहाई दी
घुटन में भी लबों पे
सजाई मुस्कराहट
वो सोचती
मैं विचलित क्यूँ हूँ
होती हुई हर बात निश्चित है
मेरा भविष्य
मेरी हथेली की लक़ीरों में क़ैद है
मेरे मस्तक पर पहले से ही
विधाता ने लिख दिया था लेख
फिर भी मैं भ्रमज़ाल में फंसकर
अपने-पराये के चक्रव्यूह में
बढ़ाये जा रही हूँ क़दम
ये सोच के बच के निकल जाऊँगी
पर कहाँ संभव था !!!
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जीवन को पाकर
मौत के तिलिस्सम से बच पाना
किसी भी रास्ते से चलो
एक न एक दिन वो तुम्हें
वहाँ पहुँचा ही देगा
जीवन का सबसे बड़ा सत्य मृत्यु
अपनी चौखट पर ले आता है
एक दिन सबको चाहते न चाहते हुए
तब होता है सन्नाटा
जहाँ खामोशी बात करती है
जिंदगी सिर्फ विलाप करती है !!!!