शनिवार, 19 जुलाई 2014

वो मिली तो मुस्‍कराई भी नहीं :)

टाँग दिया है
एक बार फिर से
हर एक दर्द को
ग़म के कील पर
और मुस्‍कान की
लीपा-पोती करके
भर दिया है
दीवार के हर एक छेद को
तो भी अब जाने क्‍यूँ
पहले जैसी रौनक नहीं है !!
...
पलस्‍तर उधड़ा-उधड़ा
गवाही दे जाता है
गौर से नज़र डालने पर
सीलन भी
चुगलखोरी से बाज़ नहीं आती
एक बड़े पोस्‍टर के नीचे से
झड़ती रेत को
बुहार के फेंक आती हूँ
जब-तब सबकी नज़र बचाकर
जाने कब तुम आ जाओ
मेरे घर मेहमान बनकर
तुम्‍हारी आवभगत में
कोई कसर न रहे  !!!
 ...
ऐ जिंदगी 
तुम भूल मत जाना
मुस्‍कराने का सलीका
कहीं आने वाला कोई लम्‍हा
मेरी शिकायत न कर दे
तुमसे ये कहते हुये
वो मिली तो मुस्‍कराई भी नहीं :)

....  

19 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ संध्या दीदी
    एक प्यारी कविता से रूबरू हुई आज
    भा गई मन को
    जी चाहता है चुरा लूँ इसे

    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूबसूरत मुस्कुराहट ज़िन्दगी की ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत खूब..लेकिन जिन्दगी तो सपनों में भी मिलने चली आती है जब मुस्कुराने की याद भी नहीं रहती..

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह ... बहुत दिनों बाद नायब बिम्ब समेटे लाजवाब रचना पढने को मिली है ...
    मज़ा आ गया ...

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी लिखी रचना मंगलवार 22 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  6. उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@मुकेश के जन्मदिन पर.

    जवाब देंहटाएं
  7. ऐ जिंदगी
    तुम भूल मत जाना
    मुस्‍कराने का सलीका
    कहीं आने वाला कोई लम्‍हा
    मेरी शिकायत न कर दे
    तुमसे ये कहते हुये
    वो मिली तो मुस्‍कराई भी नहीं। बहुत बढ़िया। .

    जवाब देंहटाएं
  8. सुन्दर भाव संयोजन..शुभकामना...

    जवाब देंहटाएं
  9. ऐ जिंदगी
    तुम भूल मत जाना
    मुस्‍कराने का सलीका
    बेहतरीन...एक दम अलग विषय और भाव...

    जवाब देंहटाएं

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....