मुझे कई बार
विस्मित करता है
तुम्हारी घबराहट
मुश्किल पलों में
जब बनती है संबल
पापा हौले से मुस्करा देते
उनकी वो मुस्कान
जानती हूँ होता है
अभिनंदन तुम्हारा !
...
मेरी हैरानियों का जवाब
बस माँ होती है
रोज सुबह उठती
कर्तव्यों की सीढियों पर
बढ़ाती कदम दर कदम
बंदिशों की चौखट को पार कर
पहुँचती निश्चित वक़्त
कार्यक्षेत्र पर अपने
इस मंत्र को साकार करते हुए
कर्मण्ये वाधिकारस्ये
मा:फलेशु तदाचन: !!
...
पर चाहती हूँ आज तुम उठो
सिर्फ औ’ सिर्फ
उगते सूरज को देखने के लिये
भोर में सुनो
चिडि़यों की चहचहाहट
कुछ गुज़रे पलो संग मुस्कराओ
हँसकर जिंदगी को गले लगाओ
मातृत्व दिवस के दिन को
अपनी सहज़ मुस्कान :) सा
बस निश्छल बनाओ !!!!
मातृत्व दिवस पर सुंदर कविता..बधाई !
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह मर्मस्पर्शी कविता ...शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमन को छू गई....
जवाब देंहटाएंमाँ के लिये स्नेह की बहुत ही प्यारी अभिव्यक्ति है ।
जवाब देंहटाएंसुबह सवेरे अलार्म की आवाज से हड़बड़ाते उठना और कभी सफाई तो कभी रसोई के बीच अधिकांश स्त्रियां /माएं सूर्योदय के इस हसीँ मंजर का लुत्फ़ नहीं उठा पाती हैं , इस पर ध्यान दिलाती है कविता !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत अभिव्यक्ति !
माँ
जवाब देंहटाएंभोर की
पहली किरण के साथ उठ
लग जाती है
दूसरों के प्रति
निबाहने अपना कर्तव्य
भूल कर
अपना अस्तित्व ।
माँ के प्रति समर्पित मन को छू लेने वाले भाव ।
मान को बहुत सुन्दर कृतज्ञ ज्ञ्यापन !
जवाब देंहटाएंNew post ऐ जिंदगी !
bahut pyaari samarpit rachna
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर प्रस्तुति..मदर्स डे पर अपने ब्लॉग www.filmihai.blogpot.com पर भी कुछ लिखा है आपका स्वागत है... :)
जवाब देंहटाएं☆★☆★☆
पर चाहती हूँ आज तुम उठो
सिर्फ औ’ सिर्फ
उगते सूरज को देखने के लिये
भोर में सुनो
चिडि़यों की चहचहाहट
कुछ गुज़रे पलो संग मुस्कराओ
हँसकर जिंदगी को गले लगाओ
वाह वाऽह…! बहुत भावनात्मक पंक्तियां हैं..
आदरणीया सदा जी
मातृत्व दिवस को समर्पित सुंदर रचना के लिए हृदय से साधुवाद !
...और बहुत बहुत मंगलकामनाएं !
शुभकामनाओं सहित...
-राजेन्द्र स्वर्णकार
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन भारत का 'ग्लेडस्टोन' और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (10-05-2014) को "मेरी हैरानियों का जवाब बस माँ" (चर्चा मंच-1608) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
"माँ" इतना छोटा सा शब्द और इतना व्यापक अर्थ लिये कि अगर समस्त वनस्पतियों की कलम से सप्तसिन्धु की रोशनाई बनाकर भी सारी धरती को कागज़ मानकर उसकी महिमा लिखी जाए तो नहीं समाएगी!!
जवाब देंहटाएंआपकी यह रचना उसी शृंखला की एक कड़ी है!!
एक बार फिर गहराई से निकली मन को गहरे तक छूती रचना !
जवाब देंहटाएंएक समर्पित कविता । आपका सुंदर मन और समवेदनाएं
जवाब देंहटाएंमातृ दिवस पर बहुत ही प्यारी और सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएं:-)
maa ko samarpit khubsurat rachnaa
जवाब देंहटाएंनिविया : हीर राँझा
पर चाहती हूँ आज तुम उठो
जवाब देंहटाएंसिर्फ औ’ सिर्फ
उगते सूरज को देखने के लिये
भोर में सुनो
चिडि़यों की चहचहाहट
कुछ गुज़रे पलो संग मुस्कराओ
हँसकर जिंदगी को गले लगाओ
मातृत्व दिवस के दिन को
अपने हंसी जैसा निश्छल बनाओ।
बहुत सुंदर ।
हर माँ को नमन
जवाब देंहटाएंमाँ ... जिस एक शब्द में जीवन का सार छिपा है ... उसका विस्तार कितना है ... उअका भाव कितना है देखते ही बनता है ... भावपूर्ण रचना ...
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर भाव को सुन्दर शब्द दिया है आपने .. माँ ऐसी ही होती है.
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@आप की जब थी जरुरत आपने धोखा दिया (नई ऑडियो रिकार्डिंग)
काश माँ हर रोज़ इस तरह ज़िंदगी को गले लगा सकती। बहुत ही सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।
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