सम्बंधों का सेतु
अपनी अडिगता पर
कई बार होता है अचंभित
जब वो कई बार चाहकर भी
अपने दायित्वों से
विमुख नहीं हो पाता
हर परीस्थिति में
टटोलता है खुद को
करता है अनगितन प्रश्न
अपने ही आप से
सम्बंधों का सेतु !
....
उसके स्तंभों में
विश्वास का सीमेंट
भरा गया था कूट-कूटकर
उसने सीख लिया था
अडिगता का पाठ
कल-कल करती नदिया के बीच
जो कहती जाती थी
उससे दूर जाते हुए हर बार
तुम्हें परखा जाएगा
पर तुम्हें रहना होगा अडिग
मेरी नियति बहना है जैसे वैसे ही तुम्हें
बस हर हाल में अडिग रहना है !!!
.....
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसंवेदनशील ....बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सदा जी ...!!
जवाब देंहटाएंसम्बन्ध और वादे निभाने के लिए ही बने होते हैं...
जवाब देंहटाएंपर जितना लचीला उतना मज़बूत…
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर बात..............
जवाब देंहटाएंबहती नदी के किनारों को जोड़े रहता है अडिग सेतू.................
सस्नेह
अनु
आशा का आह्वान है ... अडिग रहने की प्रेरणा ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ..
सबकी अपनी अपनी नियति :)
जवाब देंहटाएंसुंदर !!
बहुत सुंदर। संबंध बनाये रखता है ये अडिग सेतु।
जवाब देंहटाएंकदम मज़बूत होने चाहिए ! मंगलकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंसुंदर संदेश देती कविता..
जवाब देंहटाएंयही तो भरोसा है..
जवाब देंहटाएंएक सकारात्मक अभिव्यक्ति ...... बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंउसने सीख लिया था
जवाब देंहटाएंअडिगता का पाठ......
सकारात्मक कविता..
काफी दिनों बाद आना हुआ इसके लिए माफ़ी चाहूँगा । बहुत बढ़िया लगी पोस्ट |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति सदा जी ...!!
जवाब देंहटाएंसंबंधों के सेतु के स्तंभों में विश्वास का सीमेंट ही होना चाहिए । सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंअब शायद कमजोर हो चला है यह सम्बन्धों का सेतु क्यूंकि विश्वास के सीमेंट में भी अब मिलावट होने लगी है। बेहतरीन भावाभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएं