‘मैं’ एक स्तंभ भावनाओं का
जिसमें भरा है
कूट-कूट कर जीवन का अनुभव
जर्रे- जर्रे में श्रम का पसीना
अविचल औ’ अडिग रहा
हर परीस्थिति में मेरा विश्वास
फिर भी परखता कोई
मेरे ही ‘मैं’ को कसौटियों पर जब
लगता छल हो रहा है
मेरे ही ‘मैं’ के साथ !
....
तपस्वी नहीं था कोई मेरा ‘मैं’
तपस्वी नहीं था कोई मेरा ‘मैं’
पर फिर भी बुनियाद था
अपने ही आपका ‘मैं’
एक मान का दिया ‘मैं’
सम्मान की बाती संग
हर बार तम से लड़ता रहा
परछाईं मेरे ‘मैं’ की बनता जब उजाला
मिट जाता अँधकार जीवन का सारा !!
.....
एक चट्टान था मेरा ‘मैं’
जिसको टुकड़ों में तब्दील करना
मुश्किल नहीं तो आसान भी नहीं था
हथेलियों में उभरेंगे छाले
ये सोचकर वार करना
मैं तूफानों के वार में था अडिग
जल की धार से पाया मेरे मैं ने संबल
सोचकर तुम बतलाओ
कैसे डिग सकता है मेरा ‘मैं’ ????
जल की धार से पाया मेरे मैं ने संबल
जवाब देंहटाएंसोचकर तुम बतलाओ
कैसे डिग सकता है मेरा ‘मैं’ ????
क्या खूब कहा है निशब्द कर दिया ...सटीक परिभाषा..बहुत सुन्दर
कैसे डिग सकता है मेरा ‘मैं’ ????
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन...!
RECENT POST - पुरानी होली.
अडिग है ये ‘मैं’.... लाज़वाब रचना ...
जवाब देंहटाएं'मैं' डिग जाये, तो 'मैं' रहा कहाँ
जवाब देंहटाएंवह तो गुम हो गया कोलाहल में
खो गई उसकी पहचान
जब तक 'मैं' है
पहचान है
सम्मान है
रिश्तों की बुनियाद है
मैं से ही तो मेरा अस्तित्व् है वो कैसे मिट सकता है ....बहुत सुंदर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंस्थिर और स्थायी रहे मैं का भाव।
जवाब देंहटाएंmai me vo sab kuch samahit hai jo hamari pahchan hai......
जवाब देंहटाएंख़ुदी को कर बुलंद इतना...आत्मविश्वास ही सफलता की कुंजी है...
जवाब देंहटाएंkabhi n dige .very nice
जवाब देंहटाएंभला कौन डिगा सकता है मेरे मजबूत मैं को...
जवाब देंहटाएंजिसकी बुनियाद बेहद मजबूत तरीके से गढ़ी गयी हो....
मैं का अस्तित्व मिटाना भी क्यों ...? अपने होने का एहसास भी तो यही मैं ही है ..
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ...
यही तो महसूसना है और सबको बताना भी है..
जवाब देंहटाएं"मैं" सच में सकारात्मक भी होता है ....
जवाब देंहटाएंपरछाईं मेरे ‘मैं’ की बनता जब उजाला
जवाब देंहटाएंमिट जाता अँधकार जीवन का सारा !!
...बहुत गहन और विचारणीय प्रस्तुति...
जीवन के उज्जवल स्वरुप को संवारता बिम्ब विधान सुन्दर सशक्त रूपकत्व लिए।
जवाब देंहटाएंतपस्वी नहीं था कोई मेरा ‘मैं’
पर फिर भी बुनियाद था
अपने ही आपका ‘मैं’
एक मान का दिया ‘मैं’
सम्मान की बाती संग
हर बार तम से लड़ता रहा
परछाईं मेरे ‘मैं’ की बनता जब उजाला
मिट जाता अँधकार जीवन का सारा !!
मैं की विस्तृत परिभाषाएं
जवाब देंहटाएंमैं का होना भी ज़रूरी है इसके बिना अस्तित्व ही नहीं । सटीक परिभाषा मै की ।
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