मन में विचारों की आँधी चली,
लेखक का जीवन खंगाला गया
धर्म की पड़ताल हुई
गोत्र पर भी चर्चा हुई
तो पाया बस इतना ही कि
सारे लेखकों का
गोत्र एक ही होता है
धर्म उनका सदा लेखन होता है !!
.....
मित्रता उसकी कलम से होती है
जो अपनी नोक से
कभी वार करती है तो
कभी बस फैसला आर-पार करती है
हर युग में लेखक
अपने धर्म का बड़ी निष्ठा से
पालन करता रहा
सच को सच, झूठ को झूठ, लिखता रहा
जाने कितनों का मार्गदर्शक बन
मन का मन से वो
संवाद करता रहा !!
.....
कोरे पन्नों पर होती कभी
अंतस की पीड़ा
कभी जीवन की छटपटाहट तो
कभी बस वो हो जाता साधक
जागता रातों को
शब्दों का आवाह्न करता
पर धर्म से अपने कभी न डिगता
किसी पात्र की रचना करता है जब कोई लेखक
बिल्कुल उस जैसा हो जाता है
ना नर होता है ना नारी
वो तो होता है बस लेखक
जो विचारों की अग्नि में देता है आहुति
अपने दायित्वों की
लेखनी को अपनी पावन करता है
जब भी किसी की पीड़ा को
शब्दों से अपने वो जीवनदान देता है !!!
शब्दों से अपने वो जीवनदान देता है !!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .....
पात्रों की त्वचा में घुसे बिना लेखन वास्तविक नहीं हो पाता और इस तरह अपने सभी पात्रों को जीता हैं , उनके दुःख का विष पीकर अमृत की संजीवनी देता है!
जवाब देंहटाएंसार्थक विश्लेषण !
सारे लेखकों का
जवाब देंहटाएंगोत्र एक ही होता है
धर्म उनका सदा लेखन होता है !!
सही शब्दों में लेखक परिभाषित हुआ है .....बहुत सुन्दर .....!
.... जब भी किसी की पीड़ा को
जवाब देंहटाएंशब्दों से अपने वो जीवनदान देता है
सार्थक विश्लेषण...
लेखन और लेखक समाज के सुख-दुःख को शब्द देता है..पात्रों के माध्यम से कभी आईना दिखाता है कभी राह दिखाता है..
जवाब देंहटाएंसारे लेखकों का
जवाब देंहटाएंगोत्र एक ही होता है
धर्म उनका सदा लेखन होता है !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...!
RECENT POST - आँसुओं की कीमत.
एक लेखक को वैसा ही होना चाहिए जैसा आपने लिखा है... लेकिन एक लेखक वैसा ही होता है, यह एक बहस का मुद्दा है. आज कलम बिक चुकी है और लोग दरबारी हो गए हैं. तभी तो पुराने साहित्य के युग से हम अनेकों लेखकों का नाम आज भी गिनवा सकते हैं, लेकिन आज बहुत सोचना पड़ता है. मीडिया ने सब चौपट कर रखा है!!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है!
क्या बात .......
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अन्तर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस, गूगल और 'निराला' - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विचार.
सस्नेह
अनु
कोरे पन्नों पर होती कभी
जवाब देंहटाएंअंतस की पीड़ा
कभी जीवन की छटपटाहट तो
कभी बस वो हो जाता साधक
जागता रातों को
शब्दों का आवाह्न करता
bahut khoob
rachana
लेखन-धर्मम शरणम् गच्छामि..
जवाब देंहटाएंसार्थक विश्लेषण लेखन का ...... सस्नेह !
जवाब देंहटाएंदूसरों के सुख-दुःख को जीता है लेखक...
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक लिखा आपने सारे लेखकों का एक ही गोत्र
जवाब देंहटाएंसच है सब लेखक एक ही गोत्र के होते है ,सबका धर्म एक ही होता है ,.यहाँ ना कोई नारी है ना नर !!!
जवाब देंहटाएंnew postकिस्मत कहे या ........
New post: शिशु
sundar ....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति .....
जवाब देंहटाएंशानदार अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएं'सारे लेखकों का
जवाब देंहटाएंगोत्र एक ही होता है
धर्म उनका सदा लेखन होता है !!'
- अनुभूति और लेखन के स्तर पर कोई अंतर नहीं,जो अंतर है वह अनुभवों का है . फिर भी तो नारी-लेखन ,पुरुषलेखन के अलग अलग खाँचे कर दिये जाते हैं !
लेखक कैसा होना चाहिए इसे लेखक से बेहतर कौन जान सकता है .... धर्म गोत्र सब एक फिर भी लेखन से गद्दारी कर जाते हैं .... या फिर लिंग भेद से लेखन को नापा जाता है .
जवाब देंहटाएंलेखक कैसे होने चाहिए इसका सार्थक विश्लेषण किया है ... लेखक का धर्म गोत्र एक होते हुए भी लिंग भेद कर लेखन को नापा जाता है .
जवाब देंहटाएंपहली टिप्पणी प्रकाशित नहीं हुई थी इस लिए दुबारा किया
जवाब देंहटाएंलेखक का धर्म लेखन है फिर भी भेद क्यों .... पर क्या आज ये लेखन बिका हुआ नहीं है ...
जवाब देंहटाएंभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
जवाब देंहटाएंसदा ....सदा ही सच लिखती है .......
जवाब देंहटाएंsunder rachna
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
लेखकीय शब्दचित्र पर बेहतरीन विचार कविता।
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