मन का शोक विलाप के आंसुओं से
खत्म नहीं हुआ है
संवेदनाएं प्रलाप करती हुई
खोज रही हैं उस एक-एक सूत्र को
जो मन की इस अवस्था की वज़ह बने
आहत ह्रदय चाहता है
जी भरकर चीखना कई बार
इस नकारा ढपली पर जिसे हर कोई
आता है और बजा कर चला जाता है
अपनी ताल और सुर के हिसाब से
....
जीना है तो मरना सीखो !!!
डरना नहीं ये बात पूरे साहस के साथ
कहते हुये निर्भया हर सोते हुये को जगा गई
दस्तक तो उसने दे दी है हर मन के द्वार पर
यह हमारे ऊपर है हम साथ देते हैं
या फिर अपने कानों को बंद कर
अनसुना करते हुए
खामोशी अख्तियार कर लेते हैं !!!
खत्म नहीं हुआ है
संवेदनाएं प्रलाप करती हुई
खोज रही हैं उस एक-एक सूत्र को
जो मन की इस अवस्था की वज़ह बने
आहत ह्रदय चाहता है
जी भरकर चीखना कई बार
इस नकारा ढपली पर जिसे हर कोई
आता है और बजा कर चला जाता है
अपनी ताल और सुर के हिसाब से
....
जीना है तो मरना सीखो !!!
डरना नहीं ये बात पूरे साहस के साथ
कहते हुये निर्भया हर सोते हुये को जगा गई
दस्तक तो उसने दे दी है हर मन के द्वार पर
यह हमारे ऊपर है हम साथ देते हैं
या फिर अपने कानों को बंद कर
अनसुना करते हुए
खामोशी अख्तियार कर लेते हैं !!!
सच है , मन कई बार जी भर के चीखना चाहता है , जब वो खुद को असहाय महसूस करता है , जब उम्मीदों का खून होता है और वो कुछ नहीं कर पाता | दुआ करता हूँ ज्योति सिंह पाण्डेय'निर्भया' की जलाई हुई अलख कभी न बुझे |
जवाब देंहटाएंसादर
जो मरने की कला सीख लेता है उसे जीना आ जाता है .... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआँख ,कान बंद रखने का समय चला गया .अब सब खुला रखना है .-सुन्दर प्रस्तुति ;
जवाब देंहटाएंNew post : दो शहीद
जीने की यही पहली शर्त है..
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआभार ||
बहुत खूब आदरेया -
जवाब देंहटाएंसत्य सर्वथा तथ्य यह, रोज रोज की मौत |
जीवन को करती कठिन, बेमतलब में न्यौत |
बेमतलब में न्यौत , एक दिन तो आना है |
फिर इसका क्या खौफ, निर्भया मुस्काना है |
कर के जग चैतन्य, सिखा के जीवन-अर्था |
मरने से नहीं डरे, कहे वह सत्य सर्वथा ||
बहुत अच्छी रचना!
जवाब देंहटाएंमृत्यु ही तो शाश्वत है ... - मरना तो एक दिन है ही , फिर रोज़-रोज़ मर कर क्यों जीना ? जीने का सच्चा अर्थ .. बिना खौफ के जीना ...
~सादर!!!
bahut badhiya likha hai ...,
जवाब देंहटाएंजब तेज हवाएं
जवाब देंहटाएंअपने घर का दरवाज़ा पटकती हैं
तो दरवाज़े को कसके बंदकर
इंटों से उसे सुरक्षित करते हैं
..........
तो पडोसी के दरवाज़ों के टूट जाने का इंतज़ार क्यूँ
या उससे उदासीनता क्यूँ ?
जीना है तो साहस के साथ निडर होकर जीना होगा... मरने से क्या डरना... सशक्त अभिव्यक्ति ...शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंवाह .........बहुत ही सुन्दर।
जवाब देंहटाएंसिर्फ मरना क्यों ... मारना-मिटाना भी सीखो
जवाब देंहटाएंACHHE SHBD..
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी सद्य टिपण्णी हमारे सिरहाने की निकटतर राजदान हैं रहेंगी .आभार .
भाव पूर्ण आवाहन है जागने का जागते रहने का कुछ करने का कर दिखाने का .
सार्थक पोस्ट..... गहन अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंजीना है तो मरना सीखो !!!
जवाब देंहटाएंडरना नहीं ये बात पूरे साहस के साथ
कहते हुये निर्भया हर सोते हुये को जगा गई
दस्तक तो उसने दे दी है हर मन के द्वार पर
यह हमारे ऊपर है हम साथ देते हैं
या फिर अपने कानों को बंद कर
अनसुना करते हुए
खामोशी अख्तियार कर लेते हैं !!
..सच कहा आपने मर-मर भी क्या जीना ......
यह हमारे ऊपर है हम साथ देते हैं
जवाब देंहटाएंया फिर अपने कानों को बंद कर
अनसुना करते हुए
खामोशी अख्तियार कर लेते हैं !!!
बिलकुल फ़ैसला तो हमारे ही हाथ होता है
बहुत खूब क्या बात है सोलह आने सही....
जवाब देंहटाएंजीना है तो मरना सीखो !!!
जवाब देंहटाएंडरना नहीं ये बात पूरे साहस के साथ
कहते हुये निर्भया हर सोते हुये को जगा गई
Bahut Sahi Baat Kahi....
मृत्यु तो शाश्वत सच है लेकिन मरकर भी सबको जगा गई,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंज्योत थी जीते जी भी और जाते जाते एक नूर की लकीर खींचकर चली गयी. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज शनिवार (12-1-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
क्या बात,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
sochne par mazboor karti hai apki Rachna...Badhai ...sada sis
जवाब देंहटाएंdil chhoone waali baat
जवाब देंहटाएंजिसने मरना नहीं सीखा वह क्या जियेंगे...बहुत सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने ..
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना ...
सादर !
सुन्दर विचार:
जवाब देंहटाएंजीना है तो मरना सीखो!
ढ़
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थर्टीन रेज़ोल्युशंस
सुंदर विचार.
जवाब देंहटाएंलोहड़ी, मकर संक्रान्ति और माघ बिहू की शुभकामनायें.