मौन कब तलक रहें शब्द
स्वरों की साधना में तत्पर रहते
हिफ़ाजत करते स्वाभिमान की
अंतस की पीड़ा को मुखर होते देख
नियमों की दहलीज़ लांघी है जब भी
विश्वास को दरकिनार कर
शब्द चीखा है अपनी पूरी ताकत से !!!
...
पर कहाँ सुनता है कोई किसी की
सबके पास अपनी-अपनी
जोर आजमाईश के शब्द हैं
अपनी-अपनी मतलबपरस्ती है
अवसर भी अब सिर्फ बहाना ढूँढने लगे हैं
कब किसी के काम आना है
कब किसी के हाथों से फिसल जाना है
चालबाज़ी जब फितरत ही हो जाये तो
कहिये श्रद्धा कब तक आखिर निष्ठावान रहेगी ???
आम आदमी की
....
वे कहते हैं ऐसे में मौन धारण कर लो
पर मौन रहना इतना सहज़ है क्या
मौन के क्षणों में जब भी रहे
अंतस पर पड़े जख्मों की पपडि़यां
बिना खरोंचे ही उधड़ने लगीं
रक्त का रिसाव होता एक आह ! निकल ही जाती है
...
सच तो यह है बिना प्रयास कुछ भी संभव नहीं ..
ना ही सफल वक्ता होना ना ही मौन रह पाना
बस तुम प्रयासों की उँगली मत छोड़ना
सफलता तुम्हारी होगी !!!
स्वरों की साधना में तत्पर रहते
हिफ़ाजत करते स्वाभिमान की
अंतस की पीड़ा को मुखर होते देख
नियमों की दहलीज़ लांघी है जब भी
विश्वास को दरकिनार कर
शब्द चीखा है अपनी पूरी ताकत से !!!
...
पर कहाँ सुनता है कोई किसी की
सबके पास अपनी-अपनी
जोर आजमाईश के शब्द हैं
अपनी-अपनी मतलबपरस्ती है
अवसर भी अब सिर्फ बहाना ढूँढने लगे हैं
कब किसी के काम आना है
कब किसी के हाथों से फिसल जाना है
चालबाज़ी जब फितरत ही हो जाये तो
कहिये श्रद्धा कब तक आखिर निष्ठावान रहेगी ???
आम आदमी की
....
वे कहते हैं ऐसे में मौन धारण कर लो
पर मौन रहना इतना सहज़ है क्या
मौन के क्षणों में जब भी रहे
अंतस पर पड़े जख्मों की पपडि़यां
बिना खरोंचे ही उधड़ने लगीं
रक्त का रिसाव होता एक आह ! निकल ही जाती है
...
सच तो यह है बिना प्रयास कुछ भी संभव नहीं ..
ना ही सफल वक्ता होना ना ही मौन रह पाना
बस तुम प्रयासों की उँगली मत छोड़ना
सफलता तुम्हारी होगी !!!