गुरुवार, 20 अक्टूबर 2011
कोई अवशेष रह न जाए ...
मैं दूर जाना चाहती हूं,
तुम्हारी हर याद से
हर याद को मैने
बहते जल में
प्रवाहित किया
आते समय अपने पैरों को धोया
अपने उन्हीं हांथो से छूकर
कोई अवशेष रह न जाए बाकी
आंसुओ से भीगे चेहरे को
पोछा आंचल से अपने
कम्पित अधरो ने जो कहा
उसे अनसुना कर
मैं थके कदमों से लौट पड़ी
पता है तुम्हें
यह हिचकियां
मेरा पीछा नहीं छोड़ रहीं
अब भी लगता है इन्हें
तुमसे दूर नहीं जा सकूंगी
पर बताना होगा मुझे
घर की उस दहलीज़ को
जिसे लांघती आई हूं
हरदम साथ तुम्हारे
उन दीवारों को
जो राज़दार थीं हर बात की
उन्हें भी आदत डालनी होगी
तुम्हारे बिना रहने की ....
मैं दूर जाना चाहती हूं .......!!!
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- सदा
- मन को छू लें वो शब्द अच्छे लगते हैं, उन शब्दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....
यह हिचकियां
जवाब देंहटाएंमेरा पीछा नहीं छोड़ रहीं
अब भी लगता है इन्हें
तुमसे दूर नहीं जा सकूंगी
पर बताना होगा मुझे
घर की उस दहलीज़ को
जिसे लांघती आई हूं
हरदम साथ तुम्हारे
उन दीवारों को
जो राज़दार थीं हर बात की
उन्हें भी आदत डालनी होगी
तुम्हारे बिना रहने की ....
मैं दूर जाना चाहती हूं .......!!!antar se nikle gahre bhaw
गहरी भावाभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुतिकरण.....
दिल की गहराईयों से बनी कविता .....छू गई इस मन को ....आभार
जवाब देंहटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंनीरज
gahare bhaaw ,sundar rachanaa
जवाब देंहटाएंउन दीवारों को
जवाब देंहटाएंजो राज़दार थीं हर बात की
उन्हें भी आदत डालनी होगी
तुम्हारे बिना रहने की ....
बहुत सुन्दर लगी पोस्ट..........शानदार|
बेहद मार्मिक चित्रण किया है आन्तरिक वेदना का।
जवाब देंहटाएंसुना है,समय हर घाव को भर देता है।
जवाब देंहटाएंआते समय अपने पैरों को धोया
जवाब देंहटाएंअपने उन्हीं हांथो से छूकर
कोई अवशेष रह न जाए बाकी
मन की गहन वेदना परिलक्षित हो रही है ...
गहरी और मार्मिक अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंउन दीवारों को भी
जवाब देंहटाएंआदत डालनी होगी
तुम्हारे बिना रहने की....
सुन्दर/गहन चिंतन....
सादर बधाई...
उन दीवारों को
जवाब देंहटाएंजो राज़दार थीं हर बात की
उन्हें भी आदत डालनी होगी
तुम्हारे बिना रहने की ....
आदत बदलना मुश्किल होता है न ..
पर बताना होगा मुझे
जवाब देंहटाएंघर की उस दहलीज़ को
जिसे लांघती आई हूं
हरदम साथ तुम्हारे
उन दीवारों को
जो राज़दार थीं हर बात की
उन्हें भी आदत डालनी होगी
तुम्हारे बिना रहने की ....
मैं दूर जाना चाहती हूं .......!!!
pravi panktiyan sahi mlikha hai aapne
rachana
गहरी पीड़ा की गहन अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंek bar ko ghar ki dehlezon ko laanghna aasan ho jaye magar dil ki dehleezon ko laanghna utna hi mushkil.
जवाब देंहटाएंdard ka ehsas karati abhivyakti.
अहा, बहुत अच्छी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं--
यहाँ पर ब्रॉडबैंड की कोई केबिल खराब हो गई है इसलिए नेट की स्पीड बहत स्लो है।
सुना है बैंगलौर से केबिल लेकर तकनीनिशियन आयेंगे तभी नेट सही चलेगा।
तब तक जितने ब्लॉग खुलेंगे उन पर तो धीरे-धीरे जाऊँगा ही!
सुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंउन दीवारों को
जवाब देंहटाएंजो राज़दार थीं हर बात की
उन्हें भी आदत डालनी होगी
तुम्हारे बिना रहने की ....
मैं दूर जाना चाहती हूं .......!!!बहुत ही गहरे भावो से रची रचना....
गहरी अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंगहरी भावाभिव्यक्ति ........
जवाब देंहटाएंlaakh door jaane kee koshish karein,
जवाब देंहटाएंyaadein jaane nahee detee
gahree bhaavnaatmak abhivyakti
बेहतरीन कविता।
जवाब देंहटाएं-----
कल 22/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंयदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
प्रभावशाली रचना को सम्मान , पवों की सुभकामना ,
जवाब देंहटाएंबधाईयाँ जी /
पर बताना होगा मुझे
जवाब देंहटाएंघर की उस दहलीज़ को
जिसे लांघती आई हूं
हरदम साथ तुम्हारे
उन दीवारों को
जो राज़दार थीं हर बात की
उन्हें भी आदत डालनी होगी
तुम्हारे बिना रहने की ....
मैं दूर जाना चाहती हूं .......!!!
सदा जी, आपके अंतर से निकले गहन भाव
अत्यंत मार्मिक और हृदयस्पर्शी हैं.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरी नई पोस्ट पर आपका हार्दिक स्वागत है.
नाम जप के बारे में अपने विचार व अनुभव
से अवगत कराके अनुग्रहित कीजियेगा.
bahut pasand aayi....
जवाब देंहटाएंPrakash
www.poeticprakash.com
bahut gahan bhaavon se paripoorn rachna.
जवाब देंहटाएंभावुकता से सिक्त कविता ....
जवाब देंहटाएंयह हिचकियां
जवाब देंहटाएंमेरा पीछा नहीं छोड़ रहीं
अब भी लगता है इन्हें
तुमसे दूर नहीं जा सकूंगी
पर बताना होगा मुझे
घर की उस दहलीज़ को
जिसे लांघती आई हूं
हरदम साथ तुम्हारे
उन दीवारों को
जो राज़दार थीं हर बात की
उन्हें भी आदत डालनी होगी
तुम्हारे बिना रहने की ....
मैं दूर जाना चाहती हूं
sada ji bahut hi marmik likha hai...duriyan banane ke lie mn ko manana padta hai....
दिल की गहराईयों से बनी कविता|
जवाब देंहटाएंबहुत कठिन फैसला है
जवाब देंहटाएंबिलकुल इस नज़्म की तरह ...
दर्द से भरा हुआ .....
पैर धोना जरुरी था ....
इन अवशेषों के लिए ......
बहुत हि भावनात्मक....
जवाब देंहटाएंसुन्दर !
गहन भाव अत्यंत हृदयस्पर्शी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंपरिवार सहित ..दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं
पता है तुम्हें
जवाब देंहटाएंयह हिचकियां
मेरा पीछा नहीं छोड़ रहीं
अब भी लगता है इन्हें
तुमसे दूर नहीं जा सकूंगी
....बहुत मार्मिक ...गहन मर्मस्पर्शी भाव...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
प्रभावशाली भावुक रचना, बहुत दिनों के बाद ऐसी रचना पढने को मिली.
जवाब देंहटाएंदीपावली की शुभकामनायें.
antarmann ke bhav chhalak aaye hain...
जवाब देंहटाएंयादें याद आती हैं....बातें भूल जाती है....
जवाब देंहटाएंयादें किसी दिलो-जनम के चले जाने के बाद आती हैं....
यादें.................
सदा जी,सुनीता जी की नई पुरानी हलचल से एक बार फिर यहाँ पर.
जवाब देंहटाएंनई पुरानी हलचल का सदस्य बनने के लिए आपको बहुत बहुत बधाई.
मेरे ब्लॉग को न भूलिएगा जी.
आशा है आप मेरी 'सदा' जरूर सुनेगीं.
पैर धोकर या हाथ -मुंह धोकर पिछली यादो से दूर हो सकते हैं क्या ?
जवाब देंहटाएंसचमुच संडे का पूरा आनंद ले रही हैं आप जो न देख पायीं हैं आज की यह खुशनुमा हलचल :) आज कीनई पुरानी हलचल
जवाब देंहटाएंसुंदर, संवेदनशील पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंतुमसे दूर नहीं जा सकूंगी
जवाब देंहटाएंपर बताना होगा मुझे
घर की उस दहलीज़ को
जिसे लांघती आई हूं
हरदम साथ तुम्हारे
उन दीवारों को
जो राज़दार थीं हर बात की
उन्हें भी आदत डालनी होगी
तुम्हारे बिना रहने की ....
मैं दूर जाना चाहती हूं .......!!!
वाह सदा जी वाह hates of to you मज़ा आगया आपकी यह रचना पढ़कर बहुत सुंदर सच को ब्यान करती भावपूर्ण रचना....