बुधवार, 22 दिसंबर 2010

वो चलती रही निरन्‍‍तर ...






वो चलती रही

निरन्‍तर

जैसा जिसने चाहा

वह करती रही

अपने लिये

उसने

कभी सोचा नहीं

या वक्‍त

नहीं मिला सोचने का

दूसरों के लिए

वो खुशियां लाती अपनी

मुस्‍कराहटे देकर

खरी बात

कोई कहता तो

अनसुना कर देती उसको

भावनाओं का उसका

बड़ा गहरा

नाता था उसे निभाना

जो आता था

यदि उसने

सीखा न होता निभाना

पर कैसे

छोड़ देती वह यह गुण

जो उसे विरासत में

मां से मिला था

कभी वह मां पर हंसती थी

इन बातों को लेकर

आज उसके बच्‍चे

हंसते हैं उसपर

क्‍या मां

कभी तो अपने बारे में

सोचा करो

तब वह सोचती ...पल भर को

ठिठकती ...

फिर चल पड़ती ...

उसी राह पर

जहां से चली थी ....जैसे चली थी ...।

43 टिप्‍पणियां:

  1. यूँ लगा ... मुझे आईने के पास ले आई तुम , खुद को देख रही हूँ, और बस सोच रही हूँ

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  2. सटीक बात कही है ..जो बातें करते अपनी माँ को देखते थे आज वही हम कर रहे हैं ..आखिर निबाहना तो है ही न ..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  3. कौन है यह
    जो आज के कलयुग में
    प्यार के गीत गाता है ... बहुत अच्छी रचना

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  4. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (23/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  5. सच है...
    परंपरा प्रवाहित होनी ही है..!!!

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  6. सच्चाई को दर्पण दिखाती सुन्दर रचना!

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  7. माँ की यादे और माँ की बाते ना पीछा छोड़ने वाली होती है ना ही भूलने वाली .

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  8. दिल की बात आ गयी जुबान पर ...शुक्रिया

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  9. खूबसूरत - भावपूर्ण रचना । शुभकामनाएं ।

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  10. आज तक समझ नहीं आया कि वो ऐसी क्यूं होती है???
    बहुत प्यारी रचना...

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  11. आपकी रचना ने निःशब्द कर दिया है...प्रशंसा को शब्द कहाँ से लाऊं समझ नहीं पा रही...

    सटीक चित्रण किया है आपने.....यही तो होता है...

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  12. खूबसूरत - भावपूर्ण रचना । शुभकामनाएं ।

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  13. बहुत सुन्दर भावनात्मक रचना ... माँ की ममता ऐसी ही होती है !

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  14. aurat teri yahi kahani. ek aurat ke kai roop hote hai. in sub roopo ko nibahte hue use apne bare me sochne ka mauka kaha milta hai. sunder rachna.

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  15. औरत के जीवन का सच है। अच्छी लगी रचना। बधाई।

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  16. माँ पर लिखी हर रचना निशब्द कर देती है।
    उम्दा प्रस्तुति।

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  17. मन की संवेदना को मुखरित कर गयी आपकी कविता !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  18. maa ban kar hi maa ke ehsaaso ko samjha ja sakta hai aur maa banne ke baad maa ki har baat sahi lagti hai.

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  19. सशक्त रचना!बधाई.नव वर्ष की शुभकामनाएँ.

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  20. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना कल मंगलवार 28 -12 -2010
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..


    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  21. शायद हर युग की माँऐं इसी तरह की होती हैं ! शायद माँ होने का दूसरा नाम ही अपना सर्वस्व अपने बच्चों के लिये न्यौछावर कर देना होता है ! बहुत ही भावमयी पोस्ट ! आपका आभार एवं शुभकामनायें !

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  22. एक शाश्वत परंपरा...हरेक माँ एक माँ होती है और इसके आलावा वह और कोई पहचान चाहती भी नहीं है..बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति

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  23. हम लोग माता पिता को आदर्श मान कर अनुसरण करने लगते हैं।

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  24. हर माँ ऐसी ही होती है ...
    रोज सुबह बच्चे पूछते हैं ," आपको ठण्ड नहीं लगती " तो याद आ जाता है हम भी माँ से यही तो कहा करते थे ?

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  25. गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  26. आज फिर से पढ़ा आपकी इस रचना को...और यही लग रहा है की यदि यह भाव /स्वभाव स्त्रियों में न रहे तो परिवार का स्वरुप संभवतः वही रहेगा जो पाश्चात्य देशों में है...
    यूँ अपने यहाँ भी इस भाव का अभाव ही पारिवारिक विखंडन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता जा रहा है..

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  27. ऐसा लगा मानो मेरे लिए लिखी हैं ...!

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  28. pahli baar iss blog pe pahucha...
    aur aate hi aankhe nam ho gayee
    aisee hi to maa hoti hai...
    haste hue khud ko bachcho ke liye arpit kar deti hai..


    nav-varsh ki subhkamnayen..:)

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  29. गज़ब का चित्रण किया है आपने..... माँ ऐसी ही तो होती है.

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  30. बहुत ही गहरे जज्बात है इस कविता .... बहुत ही भावपूर्ण बन पड़ी है ये कविता. बधाई .
    फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी


    रमिया काकी

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  31. sada ji
    kya likhu ,kya kya likhu.
    maa to shabd hi aisa hai jo sabko nihshabd kar jat hai.aapne itne gahre bhavo ke saath maa ke baare jo bhau bhini kavita likhi hai,vo vastav me avarniya hai.maa ka to har roop shrddhey hota hai.
    kabhi bachpanmaa jo hamse kaha karti thi ,uski
    ab ham bhi rubrunvykhaya apne baccho ke sath kiya karte hai.yah to maa banane par hi pata chalta hai.bahut himan ko bhigoti rachna
    kabile tarrif hai.
    avarniy

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  32. एक एक पंक्ति सच्चाई उगल रही है .
    बेहद खूबसूरत रचना .

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  33. सुन्दर कविता !

    नव वर्ष(2011) की शुभकामनाएँ !

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  34. सच है ... बहुत ही मन को छू रहा है आपका लिखा ... वैसे माँ के बारे में जो भी लिखा हो मन को भा जाता है ...

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  35. आज दुबारा पढी कविता, और फिर जी चाहा कि कमेंट लिखूं। लेकिन क्‍या लिखूं, यह समझ नहीं आ रहा। बस इतना कहूंगा कि मन को छू गये भाव।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....