जो कर्मशील हैं, किनारे बैठना नहीं चाहते उन्हें मझधार में तैरना अच्छा लगता है.. मगर जिनकी नीयति ही किनारे पर बैठना हो उनके दर्द की इंतिहां हो जाती है..! वैसे ही किनारे को भी रेत का सूनापन सालता रहता है वह भी चाहता है कि लहरों की अठखेलियाँ उसके अंतर्मन को भिंगो दे। ---आपकी कविता में गज़ब का दर्शन है बहुतों ने उन पर लिखा है जिनकी नीयति किनारे पर बैठना है मगर आपने तो किनारे का दर्द ही उकेर दिया। -वाह!
किनारा आज इतना सूना है
जवाब देंहटाएंलगता है आज कोई लहर इस तरफ नहीं आई ...!
सुंदर अनुभूतियां
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति के साथ ....बहुत खूबसूरत रचना......
जवाब देंहटाएंआपने शब्दों से अंतर्मन को भिगो दिया ..... सुंदर रचना ......
जवाब देंहटाएंइसे सालता रहता है
जवाब देंहटाएंअठखेलियां लहरों की
जो चुपके से आ के
छू जाती हैं
इसका एक एक कण
भीग जाता है इसका अन्तर्मन
bahut sundar racanaa hai badhaaI
बहुत खूब अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत -२ आभार
रचना में हरेक शब्द मोती की तरह पिरोया गया है!
जवाब देंहटाएंबधाई!
जो चुपके से आ के
जवाब देंहटाएंछू जाती हैं
इसका एक एक कण
भीग जाता है इसका अन्तर्मन ।
बहुत सुन्दर.
bhawbheeni abhivyakti
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति .....!!
जवाब देंहटाएंजो कर्मशील हैं, किनारे बैठना नहीं चाहते
जवाब देंहटाएंउन्हें मझधार में तैरना अच्छा लगता है..
मगर जिनकी नीयति ही किनारे पर बैठना हो
उनके दर्द की इंतिहां हो जाती है..!
वैसे ही किनारे को भी रेत का सूनापन सालता रहता है
वह भी चाहता है कि लहरों की अठखेलियाँ उसके अंतर्मन को भिंगो दे।
---आपकी कविता में गज़ब का दर्शन है
बहुतों ने उन पर लिखा है जिनकी नीयति किनारे पर बैठना है
मगर आपने तो किनारे का दर्द ही उकेर दिया।
-वाह!
मन को भिगोती हुई रचना....खूबसूरत अभिव्यक्ति
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