बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

मैं संग्रहित करता रहा !!!!

मैं संग्रहित करता रहा
जीवन पर्यन्त
द्रव्य रिश्ते नाते
तेरे मेरे
सम्बन्ध अनगिनत
नहीं एकत्रित करने का -
ध्यान गया
परहित,श्रद्धा, भक्ति
विनम्रता, आस्था, करुणा
में से कुछ एक भी
जो साथ रहना था
उसे छोड़ दिया
जो यही छूटना था
उसकी पोटली में
लगाते रहे गाँठ
कुछ रह ना जाये बाकी !!!
...
मैं तृष्णा की  रौ में
जब भरता अँजुरी भर रेत
कंठ सिसक उठता
प्यासे नयनों में विरक्तता
बस एक आह् लिये
मन ही मन
दबाता रहता
उठते हुए ग़ुबार को !!!
.....

13 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20-10-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2501 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 21 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  3. प्यारी दीदी
    सादर नमन
    मैं थक रही हूँ
    आना ही होगा
    तुझे आना ही होग
    आना ही होगा.......
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. मन तो बहुत करता है बहना.... और वक़्त है कि इजाज़त नहीं देता

      ....:(

      हटाएं
  4. जीवन के गहरे कटु सत्य को शब्दों में लिखा है ... बहुत खूब ...

    जवाब देंहटाएं
  5. आप सभी का आभार प्रोत्साहन के लिये ... सादर 👍

    जवाब देंहटाएं
  6. सत्य और गहरी बात । बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं
  7. सत्य और गहरी बात । बहुत सुंदर।

    जवाब देंहटाएं

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....