मैं संग्रहित करता रहा
जीवन पर्यन्त
द्रव्य रिश्ते नाते
तेरे मेरे
सम्बन्ध अनगिनत
नहीं एकत्रित करने का -
ध्यान गया
परहित,श्रद्धा, भक्ति
विनम्रता, आस्था, करुणा
में से कुछ एक भी
जो साथ रहना था
उसे छोड़ दिया
जो यही छूटना था
उसकी पोटली में
लगाते रहे गाँठ
कुछ रह ना जाये बाकी !!!
...
मैं तृष्णा की रौ में
जब भरता अँजुरी भर रेत
कंठ सिसक उठता
प्यासे नयनों में विरक्तता
बस एक आह् लिये
मन ही मन
दबाता रहता
उठते हुए ग़ुबार को !!!
.....
जीवन पर्यन्त
द्रव्य रिश्ते नाते
तेरे मेरे
सम्बन्ध अनगिनत
नहीं एकत्रित करने का -
ध्यान गया
परहित,श्रद्धा, भक्ति
विनम्रता, आस्था, करुणा
में से कुछ एक भी
जो साथ रहना था
उसे छोड़ दिया
जो यही छूटना था
उसकी पोटली में
लगाते रहे गाँठ
कुछ रह ना जाये बाकी !!!
...
मैं तृष्णा की रौ में
जब भरता अँजुरी भर रेत
कंठ सिसक उठता
प्यासे नयनों में विरक्तता
बस एक आह् लिये
मन ही मन
दबाता रहता
उठते हुए ग़ुबार को !!!
.....
जीवन का कटु सत्य..
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 20-10-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2501 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
Ji aabhar aapka 👍
हटाएंबहुत ही गहरी बात!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 21 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ आपके इस स्नेह के लिये !!!!
हटाएंप्यारी दीदी
जवाब देंहटाएंसादर नमन
मैं थक रही हूँ
आना ही होगा
तुझे आना ही होग
आना ही होगा.......
सादर
मन तो बहुत करता है बहना.... और वक़्त है कि इजाज़त नहीं देता
हटाएं....:(
जीवन के गहरे कटु सत्य को शब्दों में लिखा है ... बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंwaah..bahut sundar
जवाब देंहटाएंआप सभी का आभार प्रोत्साहन के लिये ... सादर 👍
जवाब देंहटाएंसत्य और गहरी बात । बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंसत्य और गहरी बात । बहुत सुंदर।
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