कुछ जि़दों में से
एक को आज मैने
बाँध दिया है
ओखल डोरी से
और बंद कर दिया है
मन के अँधेरे कमरे में
सोचा है अब
नहीं जाऊँगी पास इनके.
....
इन जिदों की मनमानी
अपनी हर बात को पूरा करवाना
बहुत हुआ
कुछ समय पश्चात्
उस अँधेरे कमरे से आवाज आती है
मेरा कुसूर तो बताओ
मैं हथेलियाँ रखती कानों पे
पर क्या होता
आवाज़ तो मन के भीतर से थी
कुछ ताक़तें
न हीं क़ैद होती है न भयभीत
उन्हें लाख अँधेरे कमरे में रख लो
वो हौसले की मशाल बनकर उभरती हैं
जि़द भी एक ऐसी ताक़त है
जो ठान लेती है एक बार
उसे पूरा करके ही दम़ लेती है
फिर उसकी शक़्ल में
चाहे मुहब्बत हो या नफ़रत
....
बिलकुल … ये सकारात्मक दिशा हो तो सबका भला, वरना
जवाब देंहटाएंसकारारात्मक जिद को प्रोत्साहन देना चाहिए
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंकुछ ताकतें न कैद होती हैं न भयभीत!
जवाब देंहटाएंमन की जिद भी ऐसी.
कुछ जिद भली हों तो सुनना ही पड़ता है!
अच्छी रचना!
जिद तो होनी ही चाहिए। उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंhttp://chlachitra.blogspot.in/
http://cricketluverr.blogspot.in/
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (01-06-2015) को "तंबाखू, दिवस नहीं द्दृढ संकल्प की जरुरत है" {चर्चा अंक- 1993} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बेहतरीन ,सदा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएंमन की शक्ति अपार है...इससे अपने बलबूते पर पार पाना बहुत कठिन है..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अंदाज जिद पर कहने का |
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव लिए रचना
जवाब देंहटाएंलो आपकी की इस जिद में शामिल होने हम भी आ गये
जवाब देंहटाएंजिद को बांधने की भी एक जिद ही पूरी कर रही हैं आप :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...
सुंदर
जवाब देंहटाएं