तिरंगे का उत्सव मनाता बचपन
फूलों की तरह मुस्काता बचपन ।
वीरों की गाथाओं का कर स्मरण,
शीष अपना हरदम झुकाता बचपन ।
वंदे मातरम् कह बुलंद आवाज में
तिरंगे के साये में इतराता बचपन ।
भारत माता की छवि लिये मन में,
विजय के गीत गुनगुनाता बचपन ।
नाउम्मीदी के हर दौर में
भी सदा
बन के उम्मीद मुस्कराता बचपन ।
वंदे मातरम् ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ... भावपूर्ण ग़ज़ल ... बचपन खिलता रहेगा तो देश बढेगा ...
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण उम्दा ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण उम्दा ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंबचपन के दिन भी क्या दिन हैं...हर उत्सव अपना लगता है...
जवाब देंहटाएंअनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन
छोटे भाव की बड़ी भावपूर्ण ग़ज़ल
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