तुम्हारी यादों के रास्ते
चलते-चलते मैं जब भी
अतीत के घर पहुँचती
तुम रख देते
एक संदूक मेरे सामने
मैं तुम्हें महसूस करती
कुछ स्मृतियों की
धूल झाड़ती
कुछ को धूप दिखाती
ये सीली-सीली यादें
कितना कुछ कहती बिना कुछ कहे !
...
तुम कहा करते थे न कि
खुशियों के बीज़ बोने पड़ते हैं
दर्द की कँटीली बाडि़याँ
उग आती हैं खुद-ब-खुद
मैं हँसती थी औ’ कहती थी
तुम्हें तो फिलॉसफ़र होना चाहिये था
नाहक़ ही तिज़ारत में आ गये
तुम मुँह फ़ेर कहते
अब कुछ नहीं कहूँगा !!
...
सच, मैने भी तो बोये थे
कुछ हँसी और मुस्कराहट के पल
इन सीली यादों का साथ तो
नहीं माँगा था
पर ये खुद-ब-खुद
ले आईं थीं वक़्त के साथ नमीं
तुम्हारी बातों का अर्थ
जिंदगी के कितने क़रीब था
सच यादों के धागे बिना
गठान बाँधे भी
आजीवन साथ बंधे रहते हैं !!!
खुशियों के बीज़ बोने पड़ते हैं दर्द की कँटीली बाडि़याँ उग आती हैं खुद-ब-खुद......
जवाब देंहटाएंसुंदर पंक्तियाँ...बोध देती हुईं..
bahut bahut sundar
जवाब देंहटाएंसारगर्भित बहुत ही सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (16-11-2014) को "रुकिए प्लीज ! खबर आपकी ..." {चर्चा - 1799) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
अर्थपूर्ण भाव लिए रचना
जवाब देंहटाएंसच यादों के धागे बिना गठान बाँधे भी आजीवन साथ बंधे रहते हैं !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
खुशियों के बीज़ बोने पड़ते हैं दर्द की कँटीली बाडि़याँ उग आती हैं खुद-ब-खुद.....
जवाब देंहटाएंवाह।
सच कहा
जवाब देंहटाएंbehad lajawaab....
जवाब देंहटाएंसच है। यादों के धागों को गूंथने के लिए समय की सलाई की आवश्यकता भी नहीं। अपने आप साथ चले आते हैं!
जवाब देंहटाएंखुशियों के बीज बोते रहने होते हैं ... यादों को पीना होता है प्यास बुझाने के लिए ...
जवाब देंहटाएंnam nam se jazbat....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ........महकती हुई यादें सदा ही साथ चलती हैं !!
जवाब देंहटाएंसच यादों के धागे बिना
जवाब देंहटाएंगठान बाँधे भी
आजीवन साथ बंधे रहते हैं !!!
...बिलकुल सच...यादों की नमी कहाँ सूखती है...
खुशियों के बीज बोना आना ही एक कला है । यादें तो बिना गाँठ लगाए खुद ही गुंथति जाती हैं । बहुत सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंसच, मैने भी तो बोये थे कुछ हँसी और मुस्कराहट के पल इन सीली यादों का साथ तो नहीं माँगा था पर ये खुद-ब-खुद ले आईं थीं वक़्त के साथ नमीं तुम्हारी बातों का अर्थ जिंदगी के कितने क़रीब था सच यादों के धागे बिना गठान बाँधे भी आजीवन साथ बंधे रहते हैं !!!
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर पंक्तियां।