किसी सफ़े पे थी
खिलखिलाती याद उसकी
किसी सफ़े पे था
उसकी मुस्कराहटों का पहरा
इश्क़ की किताबों में
करवटें बदलती रूहों का जागना
उंगलियों के पोरों की छुँअन से
फिर कहना उनका हौले-हौले से
मुहब्बत के नर्म एहसासों का होता
पलकें कई बार
झपकना भूल ही जाती थीं
कई बार लगता
निकलकर इनमें से कुछ एहसासों ने
घेरा बना लिया है
मेरे इर्द-गिर्द औ’ कहा था
अपने हिस्से का सच तो
जाना था मैने उन्हें
कुछ यूँ भी ...
...
सच मुहब्बत कभी
मरकर भी मरती नहीं
दूर होकर भी बिछड़ती नहीं
दिलों से दिलों का ये रिश्ता
जिंदा रहता है
रूहें जो सफ़र में रहती हैं
ताउम्र अपनी !!!!!
___