मां ... के बारे में
बतलाऊंगी मैं तुमको
अपनी कविता में
तो मां नजर आएगी हर शब्द में
सबने जाने कितना कुछ
लिखा है पर मां पर ....
फिर भी अभी कुछ बाकी है
कुछ अधूरा है
मां ...कहने से आंखों में झलकता है
एक ममतामयी चेहरा
स्नेहिल आंखे
और धवल हंसी .....
मां ...एक सुकून है दिल का
एक ऐसा साया
जिसके होने से हम निश्चिंतता की चादर
तान कर सोते हैं
क्योंकि जानते हैं - मां जाग रही है
उसे हर पल की खबर होती है
बिना कुछ कहे वह
अन्तर्मन पढ़ लेती है
हमारी भूख हमारी प्यास का अहसास
हमसे ज्यादा मां को होता है
हमारी व्याकुलता ..छटपटाहट उसके सीने में
एक हलचल सी मचा देता है
सोते से जाग जाती है वह
जब भी आवाज दो तो वही शब्द
तुम्हारे पास ही तो हूं ...
मां .....धरती भी है अम्बर भी है
नदिया और समन्दर भी है
मां कोमल है तो कठोर भी है
मां की आंखों से डरना भी पड़ता है
कभी-कभी उन आंखो से छिपना भी पड़ता है
भूल गये मां की मार
?
भला किसने नहीं खाई होगी
बताए तो जरा
वो हंसाती भी वो रूलाती भी है
थाम के उंगली चलना सिखलाती है
गिरने से पहले बचाती भी है ....
मां घर की नींव बनकर
पूरे परिवार को मन के आंगन में समेटती है ...
बीज बोती है पल-पल खुशियों के
तभी मिलते हैं हमें संस्कार ऐसे
मां ....का नाम आता है लब पर तो
मन श्रद्धा के फूलों सा भावुक हो उठता है
अश्रु रूपी जल से उसे सिंचित करता है
मां ....ईश्वर की छाया है
ईश्वर का दूसरा नाम
मां का अभिनन्दन करता है ....
मां पर जाने क्या - क्या कह गया ये मन
फिर भी अधूरा है कुछ .....
मां के बिना .... कुछ भी पूरा नहीं ... !!!!