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कोई रूठता है तो तब हंस के मना लेती है मां,
खुद के सारे गम जाने कहां छिपा लेती है मां ।
आहत होती है जब भी कभी हद से ज्यादा वो,
तब बस खामोशी का पहरा लगा लेती है मां ।
दस्तक दरवाजे पे देने से पहले खोलती दरवाजा,
मेरे आने का अंदाजा जाने कैसे लगा लेती है मां ।
खजाना अनमोल रखती है मन में सब के लिए,
मुश्किल घड़ी मैं जाने कैसे मुस्करा लेती है मां ।
मेरी हंसी मेरे आंसुओं से कीमती है कहकर जब,
आंचल में सर मेरा अपने जब छिपा लेती है मां ।