(1)
इक अश्क की बूंद,
फिसलकर
तेरे गालों पे जब बही थी
बहते-बहते
जाने कब वो जाकर
समन्दर में मिल गई थी ।
(2)
रूसवाईयों को छोड़कर
जब भी
वो गया था
घर की दहलीज
बड़ी देर सिसकती रही ।
(3)
जब भी कुछ टूटता है,
वह बिखर ही
क्यों जाता है
चाहे वह कांच का
कोई पात्र हो
या मिट्टी का खिलौना ...!!