शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

हर पल मुबारक ....







आने वाला है कल नया दिन लेकर एक जनवरी,

देनी है आज विदाई हमको इकतीस दिसम्‍बर को ।

माफ करना खता जो तुमको नागवार गुजरा हो,

आए हैं सजाए माफी का इकरार तुमसे करने को ।

नई आशायें, नये सपने, बुनते हुये नये ताने-बाने,

उम्‍मीदों के दीप जलाये, महफिल तेरी सजाने को ।

जहां हसरतों की कमी नहीं, वहां धुंधली किरण भी,

चमक से अपनी रौशन करती अंधकार भगाने को ।

वंदन है अभिनन्‍दन है, नये पल का, स्‍वागत तो कर,

आया है सूरज सुबह उजली किरण संग तुझे जगाने को ।

भूल जा क्‍या गुस्‍ताखियां तुझसे हुईं तेरे साथ क्‍या हुआ,

हो खुशी का हर पल मुबारक सदा तेरे संग जमाने को ।

बुधवार, 22 दिसंबर 2010

वो चलती रही निरन्‍‍तर ...






वो चलती रही

निरन्‍तर

जैसा जिसने चाहा

वह करती रही

अपने लिये

उसने

कभी सोचा नहीं

या वक्‍त

नहीं मिला सोचने का

दूसरों के लिए

वो खुशियां लाती अपनी

मुस्‍कराहटे देकर

खरी बात

कोई कहता तो

अनसुना कर देती उसको

भावनाओं का उसका

बड़ा गहरा

नाता था उसे निभाना

जो आता था

यदि उसने

सीखा न होता निभाना

पर कैसे

छोड़ देती वह यह गुण

जो उसे विरासत में

मां से मिला था

कभी वह मां पर हंसती थी

इन बातों को लेकर

आज उसके बच्‍चे

हंसते हैं उसपर

क्‍या मां

कभी तो अपने बारे में

सोचा करो

तब वह सोचती ...पल भर को

ठिठकती ...

फिर चल पड़ती ...

उसी राह पर

जहां से चली थी ....जैसे चली थी ...।

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

क्‍यों ....?








तुम्‍हारे जाने के नाम पर

क्‍यों

मुझे लगने लगता है

जैसे मुझमें

एक खालीपन

समाता जा रहा है

यह रिक्‍तता कैसी है

जो मुझसे

सिर्फ तेरा

साथ मांगती है

और कुछ नहीं ....।

खोजती आंखे सिर्फ

तेरा ही अक्‍स हैं

क्‍यों

शायद छुपी है

इनमें मेरी

रिक्‍तता की पूर्णता ...।

पर ये भी तो सच है

कि तू हर पल साथ है मेरे

फिर भी

क्यूँ वक़्त अनमना हो उठता है

तेरे जाने के नाम पर !!!

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

दर्द की नदी में ....











(१)

हर रिश्‍ता,

गहरा होता गया

साथ तेरे....

उंगली पकड़ के

चली जब मैं

साथ तेरे ...

धड़कन का सच

रूह ने जाने

कब कह दिया

दूर कहां, तुम तो

हर पल हो

पास मेरे ....!!

(२)

मन की घुटन ने,

जब

दर्द की नदी में

गोता लगाया,

जाने कितने

आंसुओं को

वो चुपके से

किनारे में

बहा आया,

तेरे सामने जब भी

आया

सदा मुस्‍कराया ।

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

रूह से पूछो ....








हर धड़कन का सच

रूह से पूछो

वो वाकिफ है इसकी

हर सदा से ....।

किसी का इंतजार हो

धड़कन को तो

यह बेकरार हो जाती

हर आहट पर

चौंकती ....।

किसी की चाहत में

सजती जाती

निखरती रहती हर पल

संवरने के लिए ....।

किसी की जुदाई मे

यह तो बस

लाचार हो जाती

नयनों से आंसुओं की

जैसे बरसात हो जाती ....।

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....