उड़ जाती नींद आंखों से क्यों,
जब ख्वाब कोई टूट जाता है ।
गुस्ताखियां याद आती हैं क्यों,
कोई जब माफी मांग के जाता है ।
बदलता वक्त है हम दोष देते क्यों,
उसे जब कोई छोड़ के चला जाता है ।
पतझड़ में पीले पत्तों की जुदाई क्यों,
जो ये शाख से अपनी ही टूट जाता है ।
खामोशी का हर लम्हा सूना क्यों,
हर पल इतना गुमसुम कर जाता है ।
इंसान का मन बस ये ही समझ नही पाता .. तभी तो दुख, दर्द और तन्हाई पता है .... बहुत अच्छा लिखा .....
जवाब देंहटाएं"जब हमारी अनुभूतियों को शब्द मिलते हैं तभी सुख,दुख का अहसास होता और तभी कविता फूट पड़ती है........."
जवाब देंहटाएंaise prashno ke uttar shaayad kabhi nahi milate aur vah kyon ban kar hi rah jaate hai
जवाब देंहटाएंक्यों...?
जवाब देंहटाएंजान निकल जाती है और रूकती क्यूँ ये सांस नहीं,
जीते हुए भी जींदा होने का होता क्यूँ विश्वाश नहीं!
जब तक ना पता लगे तब तक ही ठीक है!
एक सुन्दर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें!
कुंवर जी,
emotional....
जवाब देंहटाएंbhawnatmak rachna ... bahut hi achhi
जवाब देंहटाएंबढ़िया है.
जवाब देंहटाएंमन के भावों को खूबसूरती से अभिव्यक्त किया है....यही तो प्रश्न है की क्यों होता है ऐसा.....बढ़िया प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंकुछ शीतल सी ताजगी का अहसास करा गई आपकी रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना! ऐसे कई सवाल है जिनका जवाब ढूंढने से भी नहीं मिलता!
जवाब देंहटाएंबढ़िया...बहुत ही मासूम से सवाल है
जवाब देंहटाएंDard ka lamba,tanha safar bayaan karti rachna...
जवाब देंहटाएंmarm me lipte ehsaas
जवाब देंहटाएंबढ़िया है.
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