शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

यादें सिमटती गईं ....









सूनी अंधेरी रात में

यादों की गठरी

गिर गई

सारी यादें

धरती पर थीं पड़ी,

मैने उन्‍हें समेट कर

वापस गठरी में

रखना चाहा

पर वे आपस में

मिलकर परिहास करने लगीं

कोई खुद को अच्‍छी कहती

तो कोई खुद को,

सब मेरी हाथों से

दूर होती जा रही थीं

मैं किसी भी एक याद को

छोड़ना नहीं चाहती थी

थक गई जब मैं तो

इन्‍हे समेटने के लिए

मैने आंसुओं का सहारा लिया

हर याद पर एक-एक बूंद

गिरती गई और यादें सिमटती गईं ।

19 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया रहा सदा जी यह यादे समेटने का अंदाज भी !

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  2. इस शानदार रचना पर वाह वाह कहने ’गठरी’ आपके ब्लाग पर आया है ।

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  3. दर्द भरी यादों की सिमटना बहुत मुश्किल होता है ....... आँसुओं से ही उठानी पढ़ती हैं ............. बहुत अच्छी रचना .......

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  4. आँसुओं और यादों का तो गठजोड़ होता ही है

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  5. तुमने समझा प्यादे हैं
    मत छूना ये यादें हैं
    यादों को समेटने का यह अन्दाज़ वाह क्या कहने

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  6. वाह सदा जी बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है
    हर याद पर एक एक बूँद गिरती गयी और यादें सिमटती गयी---- लाजवाब शुभकामनायें

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  7. शायद मुझे पूछ हीं लेना चाहिए कि वो नदी कहाँ गयी...

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  8. amrita pritam ji mujhe bhi bahut bhati hai...aur aapke likhne mein bhi kashish hai..keep it up :)

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  9. यादों को गठरी में समेटने की कोशिश न करो.. बहुत कोमल होती हैं...

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  10. वाह वाह क्या बात है! बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! इस लाजवाब रचना के लिए बधाई!

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  11. क्या कहूँ...अद्भुत भावपूर्ण रचना...वाह...
    नीरज

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  12. yado ko sametane ka andaz bhee dil ko choo gaya.....
    bahut bhavibhor kar jane walee rachana hai ye............

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  13. महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  14. बहुत प्रभावशाली रचना सुंदर दिल को छूते शब्द .मनभावन,अद्भुत

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....