सूनी अंधेरी रात में
यादों की गठरी
गिर गई
सारी यादें
धरती पर थीं पड़ी,
मैने उन्हें समेट कर
वापस गठरी में
रखना चाहा
पर वे आपस में
मिलकर परिहास करने लगीं
कोई खुद को अच्छी कहती
तो कोई खुद को,
सब मेरी हाथों से
दूर होती जा रही थीं
मैं किसी भी एक याद को
छोड़ना नहीं चाहती थी
थक गई जब मैं तो
इन्हे समेटने के लिए
मैने आंसुओं का सहारा लिया
हर याद पर एक-एक बूंद
गिरती गई और यादें सिमटती गईं ।
बहुत सुंदर हैं. शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंfir ek bar behtreen rachna..
जवाब देंहटाएंबढ़िया रहा सदा जी यह यादे समेटने का अंदाज भी !
जवाब देंहटाएंyaadon me simatti yaaden........waah
जवाब देंहटाएंइस शानदार रचना पर वाह वाह कहने ’गठरी’ आपके ब्लाग पर आया है ।
जवाब देंहटाएंदर्द भरी यादों की सिमटना बहुत मुश्किल होता है ....... आँसुओं से ही उठानी पढ़ती हैं ............. बहुत अच्छी रचना .......
जवाब देंहटाएंआँसुओं और यादों का तो गठजोड़ होता ही है
जवाब देंहटाएंतुमने समझा प्यादे हैं
जवाब देंहटाएंमत छूना ये यादें हैं
यादों को समेटने का यह अन्दाज़ वाह क्या कहने
बहुत शानदार और सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंआभार...
वाह सदा जी बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना है
जवाब देंहटाएंहर याद पर एक एक बूँद गिरती गयी और यादें सिमटती गयी---- लाजवाब शुभकामनायें
शायद मुझे पूछ हीं लेना चाहिए कि वो नदी कहाँ गयी...
जवाब देंहटाएंamrita pritam ji mujhe bhi bahut bhati hai...aur aapke likhne mein bhi kashish hai..keep it up :)
जवाब देंहटाएंयादों को गठरी में समेटने की कोशिश न करो.. बहुत कोमल होती हैं...
जवाब देंहटाएंवाह वाह क्या बात है! बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! इस लाजवाब रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंit's a great post
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EINDIAWEBGURU
क्या कहूँ...अद्भुत भावपूर्ण रचना...वाह...
जवाब देंहटाएंनीरज
yado ko sametane ka andaz bhee dil ko choo gaya.....
जवाब देंहटाएंbahut bhavibhor kar jane walee rachana hai ye............
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावशाली रचना सुंदर दिल को छूते शब्द .मनभावन,अद्भुत
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