...1
ये सुधियाँ भी
हुई बावरी देखो
चंचल मन।
…2
मीठी-सी यादें
कड़वी जिंदगी का
टॉनिक जैसे।
...3
सूनी मुँडेर
यादों का कागा बोले,
मन चहके।
...4
मन की नदी,
यादों के सागर से
मिली खो गई।
...5
यादों की डोर
बाँधे मन– पतंग
उड़ती जाए।
...6
यादों के मोती
चुगता जाए मन
फिर भी भूखा।
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार 3-11-2020 ) को "बचा लो पर्यावरण" (चर्चा अंक- 3874 ) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
जी आभार आपका
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर मंगलवार 3 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 03 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुबह और शाम
जवाब देंहटाएंकाम ही काम
क्यों नही लेते पिया
प्यार का नाम
....
आज सदाबहार
सदा
तीन जगह एक साथ
सादर नमन
मुग्ध करती कविता - - अविरल प्रवाह में बहती हुई भावना - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंGreat work RAJASTHAN GK
जवाब देंहटाएंGreat post!
जवाब देंहटाएंThis is such a helpful post
हृदयस्पर्शी । बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंbhut hi achhi jankari di hai aapne . thanks
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