रविवार, 6 सितंबर 2020

निर्मल स्नेह भर अँजुरी में ...

 


मन की नदी में 

तर्पण किया है पापा भावनाओं से,

भीगा सा मन लिए ...

इस पितृपक्ष 

फिर बैठी हूँ आकर, भोर से ही

छत पर, जहाँ कौए के 

कांव - कांव करते शब्द

और सूरज की बढ़ती लालिमा

के मध्य, निर्मल स्नेह भर अंजुरी में

कर रही हूँ अर्पित, 

नेह की कुछ बूंदें गंगाजल के संग 

आशीष की अभिलाषा लिए!!!

…..

© सीमा 'सदा'






    

11 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार ( 7 सितंबर 2020) को 'ख़ुद आज़ाद होकर कर रहा सारे जहां में चहल-क़दमी' (चर्चा अंक 3817) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

    जवाब देंहटाएं
  2. अपनों की याद लिए मन के कोने में मुरझाए मुकुल को पल्लवित करती सी अभिव्यक्ति।बहुत ही सुंदर मन को छूती।
    सादर प्रणाम दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. नमन। बहुत भावपूर्ण रचना। मन की श्रद्धा को अर्पण करना ही तो श्राद्ध है।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर भावपूर्ण सृजन...
    पितृदेवो नमः

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर कोमल भावों से सजी सुंदर रचना सीमा जी ।

    जवाब देंहटाएं

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....