मंगलवार, 9 जून 2020

तसल्ली भरे शब्द सौंप दूँ !!

समय का साक्षात्कार
कभी यूँ भी होगा
किसने सोचा था
लम्बी-लम्बी योजनाओं में
समय के अवरोध
जीवन पर्यंत
याद रहेंगे, अपने अपनों से
मिलने के लिए
महीनों की प्रतीक्षा !
….
इजाज़त नहीं देता मन,
घटित घटनाओं को
अनदेखा कर
आगे बढ़ने को
पथिक से इन शब्दों की
चहलकदमी से सोचती
किसके दर्द को कम
किसके को ज्यादा आंककर
मैं तसल्ली भरे शब्द सौंप दूँ !!
किसके आँसुओं को
पोछकर उंगलियों से अपनत्व में
किसके काँधे पर,हौसले से भरी
हथेली रख दूँ, दिल, दिमाग
की कहूँ तो ….
इन दिनों, इन दोनों का
कोई तालमेल नहीं बैठता
दोनों ही बस बौखलाये
फिरते हैं, सच कुसूरवार कौन
सज़ा किसी और को मिलती है !!!
....

14 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-06-2020) को  "वक़्त बदलेगा"  (चर्चा अंक-3728)    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुंदर और भावपूर्ण रचना।

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  3. अंतःकरण में उतरते गहन भावों से सजा सुन्दर सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  4. इजाज़त नहीं देता मन,
    घटित घटनाओं को
    अनदेखा कर
    आगे बढ़ने को
    पथिक से इन शब्दों की
    चहलकदमी से सोचती
    किसके दर्द को कम
    किसके को ज्यादा आंककर
    मैं तसल्ली भरे शब्द सौंप दूँ !!... गहन विचारों में सिमटी बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय दी.
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. कुसूरवार कौन?
    -इसी प्रश्न का उत्तर ढूँढने की ज़रूरत है आज.

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुदर भाव मन में उतार द‍िये ...बहुत खूब सीमा सदा जी

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  7. बहुत गहन संवेदना लिए सार्थक अभिव्यक्ति।

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  8. समय और प्राकृति की चाल किसी को सुनाई नहीं देती ... फिर प्रतीक्षा के अलावा कोई चारा कहाँ रह जाता हैऊ .,... बहुत भावपूर्ण रचना ...

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....