प्रेम के रिश्ते
निभते जाते हैं
इन्हें निभाना नहीं पड़ता
कोई रहस्य
कोई पर्दा
नहीं ढक पाता है
इसके होने के
वज़ूद को !
...
ये जब होता है
तो पूरी क़ायनात
एक हो जाती है
इसकी तरफ़दारी में
सारी नफ़रतों को
पिघलना पड़ता है
प्रेम में
ईश्वर का साक्षात्कार
होना तय है !!
...
जो नहीं मानता प्रेम को
उससे तुम
घृणा मत करो
ये सोचो
जाने कौन सा
गुऩाह किया होगा इसने
जो रब़ ने
इसे ये नेम़त नहीं बख़्शी !!!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (28-09-2015) को "बढ़ते पंडाल घटती श्रद्धा" (चर्चा अंक-2112) (चर्चा अंक-2109) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
अनन्त चतुर्दशी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सही कहा है..प्रेम के लिए कुछ भी असम्भव नहीं..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंजो नहीं मानता प्रेम को
जवाब देंहटाएंउससे तुम
घृणा मत करो.
सुंदर.
प्रेम की सही परिभाषा!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना वर्षान्त अंक "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 31 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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