खुशियों को जब भी देखा मैने
नये परिधान में
सोचा ज़रूर ये आज
किसी की हो जाने के लिये
तैयार हुई हैं!
...
बस उनके आग़त का
स्वागत करेगा जो
ये वहीं ठहर जाएंगी
पर कहाँ
इन्हें तो पल भर बाद
फिर आगे बढ़ जाना था
हिम्म़त कर पूछा
इतनी जल्दी चल दीं
थोड़ी देर तो और मेरा
साथ निभाया होता!!
....
वो मुस्करा के बोल उठीं
हम तो रहती हैं
यूँ ही गतिमान
नहीं है निश्चित
हमारा कोई परिधान
जब चाहा
एक लम्हा लिया रब से
किसी को सौंप दिया
फि़र किसी और के पास चले
हम लम्हों के संग
साथ तो तुम्हें निभाना होता है
किसी और की खुशी में
मुस्काराना होता है !!!!