रंग आतिशी हो गए हैं सारे
गुलाल भंग के नशे में है
तभी तो हवाओं में
उड़ रहा है
चाहता है होली के दिन
ढोलक की थाप पर
हर चेहरा गुलाबी हो जाए !
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सूखे हुये रंग
भीगना चाहते हैं
भीगते-भीगते
वो रंगना चाहते हैं
आत्मीयता का लिबास
होली की उमंग में !!
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उमंग के इन्हीं लम्हों में
रंगों की जबान बस
स्नेह की बोली जानते हुए
कहाँ परहेज़ करती है
अपने और पराये का
तभी तो रंग जाता
तन के साथ मन !!!
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कुछ रंग
उम्मीद की हथेलियों पर
घुल कर छाप छोड़ देते है
इन पलों में ताउम्र के लिए
फिर नहीं चढ़ता
कोई रंग दूजा
मन की दीवारों पर !!!!
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