बुधवार, 18 मई 2011

भुलाना चाहोगे ....











तुम मुझसे दूर जाकर जाने क्या सुकून पाओगे,
जितना भुलाना चाहोगे उतना ही करीब पाओगे

अश्कों का सौदा हो गया दिल से वरना ज़ख्,
दिखाता तुम्हें तो यूं छोड़ के जा भी ना पाओगे

हंसते-हंसते मैने तुम्हें रूख्सत किया है जब भी,
रोये हैं हम तेरी याद में ये तो कह ना पाओगे

सिमट गया हर लम्हा तेरी चाहत की कैद मे,
मुझको इल्जाम यूं सरेआम दे तो पाओगे

वक् की साजि़शों का शिकार जब भी होते तुम,
मुझे कुसूरवार अपना सदा कह तो ना पाओगे

20 टिप्‍पणियां:

  1. इलज़ाम देकर भी क्या होगा
    सच को अन्दर से न मिटा पाओगे

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  2. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!

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  3. जितना भूलना चाहोगे
    उतना ही याद आयेंगे
    बहुत सुन्दर ....

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  4. कोमल भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति

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  5. बहुत ही सुन्दर …………मन को छूती अभिव्यक्ति।

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  6. बहुत ही सुंदर लिखती हैं आप... आपकी यह कविता भी लाजवाब है...

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  7. "जितना भूलना चाहोगे उतना ही करीब पाओगे"
    अजी भूलना ही कौन चाहता है
    ये तो सब उपरी दिखावा है
    और पास आने का बहाना है
    लाजवाब ....
    आभार

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  8. बहुत सुन्दर भाव संयोजन्।

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  9. सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति जो दिल को छूती है.

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  10. कोमल भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति|धन्यवाद|

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  11. सिमट गया हर लम्हा तेरी चाहत की कैद में

    बहुत बहुत सुन्दर रचना

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....