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गुरबत पे मेरी मुझको छोड़ सबको तरस आया,
सब मुझे छोड़ गये मैं न उसको फिर छोड़ पाया ।
कुछ भूल गये मुझको, कुछ अजनबी हुये मुझसे,
मैं लौटा यादें साथ ले जब मुश्किल ये मोड़ आया ।
रिश्ता खून का दुहाई मांगे मेरे होने की जब भी,
मैं कहता हंसकर मैं तो सारे रिश्ते तोड़ आया ।
बिन गांठ के कौन है जो आजतलक जोड़ पाया ।
खेल तकदीर के खिलौना बन के इंसान निभाता है,
भटका सारा जीवन तब जाकर यह निचोड़ आया ।