शनिवार, 4 अप्रैल 2020

हार नहीं मानता !!!

मन जो है न,
तन रूपी क़बीले का सरदार,
स्वतंत्र और हर अंकुश से परे
कभी भावुकता इसकी
बिल्कुल माँ की तरह,
तो कभी कड़क बाबा के जैसे
जीवन की पगडंडियों पर
उछलता, कूदता, गिरता, सम्भलता
पर हार नहीं मानता !
...
© सीमा 'सदा'

13 टिप्‍पणियां:


  1. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    05/04/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. ''तन रूपी कबीले का सरदार'' - अद्भुत. बहुत सुन्दर रचना.

    जवाब देंहटाएं
  3. कहते हैं मन के हारे हार ...
    इसलिए कभी हार नहीं माननी चाहिए .... मन को तो बिलकुल भी नहीं ...
    सुन्दर रचना ...

    जवाब देंहटाएं

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मन को छू लें वो शब्‍द अच्‍छे लगते हैं, उन शब्‍दों के भाव जोड़ देते हैं अंजान होने के बाद भी एक दूसरे को सदा के लिए .....