गणतंत्र
की सुबह
उत्सव
का उल्लास लिये
बचपन
की हथेली में
कुछ
गुलाब हैं
और
कुछ पंखुडिया भी
नन्हें
कदमों में
साधक
का भाव है
जयहिन्द
का स्वर
..
मैं
ढूँढ़ती हूँ
खुद
को
इन
नन्हें पदचापों में
जो
कुहासे से
लिपटी
भोर में
उत्सुक
हैं
तिरंगे
के फहराये जाने को
गुलाब
की कुछ
पंखुडि़या
अर्पित कर
जन मन
गण जय हे
गाये
जाने को
..
ये
दिवस
हमेशा
एक उत्साह
एक
उर्जा लिये
मेरे
मन पे
दस्तक
देता था
देता
रहेगा
गणतंत्र
दिवस की
पूर्व
संध्या को ही
सुबह
की तमाम
होने
वाली
गतिविधियों
को
चलचित्र
की भांति
पलकों
पे संजोये
भारत
की शान में
गुनगुना
उठता था
सारे
जहाँ से अच्छा
हिन्दोस्ता
हमारा ...
!! जय
हिन्द !!