पापा की हथेलियों में
होते मेरे दोनो बाजू और मैं
होती हवा में
तो बिल्कुल तितली हो जाती
खिलखिलाकर कहती
पापा और ऊपर
हँसते पापा ये कहते हुये
मेरी बहादुर बेटी!
....
पापा की हथेलियों में
जब भी मेरी तर्जनी कैद होती
मुझे जीवन मेले से लगता
मैं खुद को पाती
वही घेरदार फ्रॉक के साथ
उनके लम्बे कदमों संग
दौड़ लगाती हुई!
....
पापा की हथेलियां
थपकी स्नेह की जब भी
कभी कदम डगमगाये
हौसले से उनके
आने वाला पल मुस्कराये!