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रश्मि प्रभा - ब्लॉग की दुनिया में एक बहुचर्चित नाम .... जिनको पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से भी हमने आपने जाना है . रश्मि जी का काव्य-संग्रह ,
'शब्दों का रिश्ता ' जिसका विमोचन प्रसिद्द चित्रकार इमरोज़ के हाथों गत वर्ष प्रगति मैदान में हुआ , संवेदनाओं , सपनों , सामयिक दर्द का खुला
आकाश है , जहाँ हर तारों में हर किसी को अपना कुछ मिल जाता है .
रश्मि जी शब्दों की धनी तो हैं ही, उनके हर शब्द दिल में उतरते हैं और वाकई एक अटूट रिश्ता कायम करते हैं .किताब की रूपरेखा में एक अदभुत शालीनता है ...पृष्ठ खोलते उनके लिखे शब्द बड़ी आत्मीयता से मुखर हो उठते हैं -
'ज़िन्दगी कभी एक गीत नहीं गाती ,
उसे हर राग मालूम है
और हर धुन पे चलना उसकी
नियति है ! '
शब्दों का रिश्ता उनकी उस पोटली का जादू है, जिसके जादू से कोई अलग नहीं रहता ना वे अपनी पोटली छुपाकर रखती हैं . इनके ब्लॉग पर यदि हम दृष्टि डालें तो पाएंगे कि अपने शब्दों के रिश्ते को इन्होने मजबूत आयाम दिए हैं . 'दीदी' 'मासी' 'माँ' 'सहेली' 'बड़ी माँ' ..... इस लेखिका को लोगों ने सहर्ष रिश्तों में अपनाया और इन्होंने भी सबको एकसूत्र में पिरोने का हर संभव प्रयास किया है.
इनकी रचना 'अनुमान' में पहचान को खो देने का सच उजागर है , और अनुमान की अटकलें हैं , समाज की इस विद्रूपता के शिकंजे में
सभी हैं . ह्रदय के तार तार हिल जाते हैं -
ज़िन्दगी दो कमरे
बालकनी और वातानुकूलित गाडी में बन्द है
चारों तरफ सिर्फ अनुमान है
सिर्फ अनुमान ....'
अनुसंधानों ने ख़्वाबों की कोमलता को किस तरह ख़त्म कर दिया , इनकी आँखों से ये जज़्बात छलकते हैं -
'हाय रे मानव !
तुमने अपनी खोज की धुन में
मासूम कहानियों के रिश्ते को
बेरहमी से मिटा डाला ...' कितनी सूक्ष्मता से कवयित्री ने हर तरफ अपनी चेतना का प्रमाण दिया है .
वक़्त की आपाधापी और शून्यता में वर्चस्व ढूंढता मानव रोबोट हो चला है , कवयित्री ने बड़े प्यार से कहा है -
'आओ पीछे लौट चलें
बहुत कुछ पाने की प्रत्याशा में
हम घर से दूर हो गए...
पहले की तरह रोटी मिल बांटकर खायेंगे
...
कुछ मोहक सपने तुम देखना कुछ हम '
गले में अटकी रुलाई फूटने लगती है , कदम उनकी पुकार पर सिहर उठते हैं .
पृष्ठ दर पृष्ठ शब्दों ने रिश्ता बनाया है. संग्रह को पढ़ते हुए परिवर्तन का आह्वान सुनाई देता है .... कोई ज़बरदस्ती नहीं एक शांत एहसास
झील की लहरों में हलचल पैदा करता है-
'पानी की धारा को बदलने का सामर्थ्य
तुम्हारे ही भीतर है
शुरुआत घर से हो
तभी परिवर्तन होता है...'
कमाल का सन्देश देती हैं एक एक रचनाएँ . अर्जुन सा हुआ मन लक्ष्य के लिए फिर उद्दत होता है... कितना साहस देते हैं ये शब्द -
'तूफानों और नाकामयाबियों से
वही गुजरता है
जिस पर प्रभु की विशेष कृपा होती है ...'
मैंने इस रिश्ते को आदि से अंत तक जिया है ... किसी विषय से अछूता नहीं है यह संग्रह . अगर आपकी रूचि के कमरे में इस रिश्ते
की झलक नहीं तो मेरी समझ से अगर की पूरी सुवास नहीं .
कवि पन्त के दिए नाम को इन्होंने सार्थक कर दिया .... इनके शब्दों में इनकी ब्रह्ममुहुर्तिये झलक है , प्रथम किरणों की जीवन्तता ... जिसके
समक्ष एहसासों के कलरव हर काल को सजीव कर जाते हैं .
क्या होगी उनकी या उनकी सोच की समीक्षा ! बस श्रद्धा के कुछ बीज हैं ये उनके सम्मान में ... जो न मध्यांतर है , न अंत .... सिर्फ प्रारंभ की पवित्रता है , जो खुद सिंचन आरम्भ करे , वहाँ - हाँ वहाँ से कोई खाली हाथ नहीं जाता .
रश्मि दी की रचनाओं में जीवन की सच्चाइयाँ छिपी होती है ... और होती है प्रत्याशा की बात ... बहुत सुन्दर समीक्षा !
जवाब देंहटाएंसार्थक समीक्षा ..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी समीक्षा
जवाब देंहटाएंयह पुस्तक शैलेश भारतवासी जी ने मुझे वर्धा में आयोजित ब्लॉगर्स कार्यक्रम के दौरान दी थी, दो बार पढ़ चुका हूँ किन्तु इस पुस्तक के विंब, कथ्य और शिल्प को बार-बार महसूस करने की लगातार मेरी आकांक्षा बनी हुई है ....बेहद सुन्दर और सार्थक कविताओं का संग्रह है यह ....रश्मि जी को कोटिश: बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएंरश्मि जी को...... बधाईयाँ !
जवाब देंहटाएं..........बहुत सुन्दर समीक्षा !
जवाब देंहटाएंपन्त का दिया नाम सार्थक कर दिया, अतिशय बधाईयाँ।
जवाब देंहटाएंसूर्य की असंख्य रश्मियों के समान दमकती रश्मि जी को ढेरों बधाई एवं शुभकामनायें। आपकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम होगी । सदा जी आभार आपका भी ।
जवाब देंहटाएंसदा जी आज आपकी लेखनी का एक और आयाम सामने आया. बहुत अच्छी समीक्षा की है. बहुत बधाई.
जवाब देंहटाएंरही बात रश्मि जी की तो उनकी लेखनी के हम सभी कायल हैं. हाँ अब जैसे ही मौका लगा ये पुस्तक जरूर पढूंगी. धन्यबाद.
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंरश्मि प्रभा जी की कृतियाँ हिंदी साहित्य के लिए अमूल्य धरोहर के सामान हैं.
बेहतरीन प्रस्तुति है आपकी
रश्मि प्रभा जी को असीम शुभकामनाएं
सार्थक समीक्षा .. रश्मि जी की लेखनी के कायल तो हैं ही. शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंham bhi is karykram me mauzood the.. sunder sameeksha.
जवाब देंहटाएंबढ़िया समीक्षा!
जवाब देंहटाएंरश्मिप्रभा जी को बधाई!
अच्छी समीक्षा
जवाब देंहटाएंट्रेलर ऐसा है तो पिक्चर कैसी होगी
बढिया समीक्षा है सदा जी. किताब पढने की इच्छा है.
जवाब देंहटाएंरश्मि जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंरामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें.
Rashmi jee ko badhaee .
जवाब देंहटाएंsameeksha ucchstareey rahee...
रश्मि जी को ढेरों बधाई एवं शुभकामनायें। - डॉ. रत्ना वर्मा
जवाब देंहटाएंसार्थक और सुन्दर समीक्षा ...
जवाब देंहटाएंरश्मि प्रभा जी को बहुत-बहुत बधाई ...
सुन्दर समीक्षा। रश्मि जी को इस पुस्तक के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी समीक्षा|रश्मि जी को ढेरों बधाई|
जवाब देंहटाएं..सुंदर समीक्षा।
जवाब देंहटाएंआपके श्रदा के बीज या मै तो कहूँगा आपके श्रद्धा सुमन श्रद्धेय रश्मि जी के प्रति अनुपम और आपके दिल के पवित्र भावों को प्रकट कर रहें हैं.
जवाब देंहटाएंआप मेरे ब्लॉग पर आयीं,इसके लिए बहुत बहुत आभार आपका.
बहुत अच्छी समीक्षा के लिए बहुत-बहुत आभार .
जवाब देंहटाएंरश्मि जी को बधाई एवं हार्दिक शुभकामनायें.
रश्मि जी को असंख्य बधाई . वो सचमुच में अपने नाम को चरितार्थ करती है .
जवाब देंहटाएंhamne khud anubhav kiya tha ye vimochan aur iss pustak ki kuchh kavitaon ko :)
जवाब देंहटाएंहमारी दीदी को हमारी तरफ से बहुत - बहुत बधाई आप आगे भी इसी तरफ ऊँचाइयों को छुती रहें हम यही कामना करते हैं |
जवाब देंहटाएंरश्मि जी के शब्द किसको नहीं बांधते माँ सरस्वती की अनुकम्पा हो जिसके सर पर उन्हें तो चमकना ही है रश्मि जी और आपकी लेखनी को नमन
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