नमी आंसुओं की उभर आई आंखों में जब,
गिला कर गई फिर किसी की बेवफाई का ।
बहना इनका दिल के दर्द की गवाही देता,
एतबार किया क्यों इसने इक हरजाई का ।
कितना भी रोये बेटी बिछड़ के बाबुल से,
दब जाती सिसकियां गूजें स्वर शहनाई का !
ओट में घूंघट की दहलीज पर धरा जब पांव,
चाक हुआ कलेजा आया जब मौका विदाई का ।
जार-जार रोये बाबुल मां ने छोड़ी न कलाई मेरी,
बहते आंसुओं में चेहरा धुंधला दिखे मां जाई का ।