स्मृतियाँ जब भी तर्क करती
पापा मैं आपको सोचती,
और फिर आपकी हथेली में
होती मेरी उँगली,
जिया हुआ,बेहद सुखद क्षण
सजीव हो उठता,
या फिर …
जब मेरे दोनों बाजू थाम
मुझे आप, हवा में उछालते
मैं चहक कर कहती
और ऊपर …
लगता था वक़्त बस यहीं थम जाये!
...
सबने अपने जीवन में
कभी न कभी, ये जरूर सोचा होगा,
पर वक़्त को गुज़रने की
हमेशा जल्दी ही रही,
पूरे तेईस वर्ष गुज़र गये
बिन आपके पापा,
पर एक भी स्मृति की,
विस्मृति न हुई आज तक!
ना ही कभी होगी!!
…
आज फिर सजा है
मेरे मन का आँगन,आपकी
मीठी स्मृतियों से
नमी हैं पलकों के आसपास,
स्मरण आपका ...
करते-करते, जी लिए
बचपन के अनगिनत पल,
सच आपकी तरह ही
अनमोल हैं ..
ये स्मृतियाँ आपकी !!!
....