बुधवार, 4 अप्रैल 2012

कौन मनायेगा ???













याद तेरी जब भी आती
जाने कितने सवाल करती
कभी जज्‍बातों से लड़ती
तो कभी तनहाईयों से पूछती
किस बात पे तुमने
मुझपर यूं पहरे लगाये हैं
  ...
मैं सिमट जाऊंगी
खुद ही एक दिन
तुम्‍हारी आंखों में
बन के अश्‍क
जिनमें आज भी
मेरी यादों के साये हैं ...
कोई कुछ कहता
इससे पहले ही
इक रूठी हुई याद ने
इस कदर हंगामा कर दिया
मेरे दिल का कोना
फ़कत तनहाईयों के नाम
कर दिया 
...
कौन मनायेगा ?
उस रूठी हुई याद को
किससे पूछती ?
लब खामोश थे  जहां
वहां जज्‍बात बेजुबान से
दिल की सदा
सुनने को कोई तैयार नहीं
दिमाग अपनी चलाता
मर्जी अपनी
सबसे पहले दिखलाता
कोई कुछ कहता तो
बस एक (: बुझी मुस्‍कान
कोई रास्‍ता नहीं
उसके पास यादों का
झगड़ा निपटाने के लिए
कोई याद तैयार नहीं थी तेरी
इस दिल से जाने के लिए ...





35 टिप्‍पणियां:

  1. उत्कृष्ट प्रस्तुति ।
    बधाई स्वीकारें ।।

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  2. वाह...बहुत ही शानदार रचना प्रस्तुत की है आपने दी पढ़ते पढ़ते आनंद आ गया ......बहुत बहुत आभार।

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  3. किस बात पे तुमने
    मुझपर यूं पहरे लगाये हैं...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  4. kya likhun sda, hamesha hi aek atulniya prastuti detin haen aap .bdhai.

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  5. अति सुन्दर अभिव्यक्ति है ..

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  6. किस बात पे तुमने
    मुझपर यूं पहरे लगाये हैं.

    शानदार अभिव्यक्ति!

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  7. कौन मनायेगा ?
    उस रूठी हुई याद को
    किससे पूछती ?
    लब खामोश थे जहां
    वहां जज्‍बात बेजुबान से
    दिल की सदा
    सुनने को कोई तैयार नहीं
    ....jab koi nahi sunta tab dil hi to hai jo apne aap ko manata rahta hai..
    bahut badiya jajbaat..

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  8. बहुत बहुत सुन्दर...................

    सस्नेह.

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  9. रूठी यादों को मनाते चलों, प्यार बाँटते चलो।

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  10. इस कदर हंगामा कर दिया
    मेरे दिल का कोना
    फ़कत तनहाईयों के नाम
    कर दिया
    दिल को छू गाई ये अभिव्यक्ति सदा जी ....!!

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  11. कौन मनायेगा ?
    उस रूठी हुई याद को
    किससे पूछती ?
    लब खामोश थे जहां
    वहां जज्‍बात बेजुबान से
    दिल की सदा
    सुनने को कोई तैयार नहीं,...

    शानदार बेहतरीन अभिव्यक्ति!...सदा जी ....

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  12. बहुत मना कर भी ,कोई ना मना पाया
    अब क्या देखूं और क्या देखूं कि कौन मनाएगा ||....अनु

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  13. इक रूठी हुई याद ने
    इस कदर हंगामा कर दिया
    मेरे दिल का कोना
    फ़कत तनहाईयों के नाम
    कर दिया

    जब याद अभी भी बसी है तो तनहाई कैसी ? सुंदर प्रस्तुति

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  14. तन्हाई और यादों का तो घनिष्ठ रिश्ता है
    बहुत सुन्दर रचना

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  15. उफ़ यादे भी कैसे कैसे ज़ुल्म ढाती है

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  16. ये यादें भी तो हट्ठी होती हैं आसानी से जाती नहीं ... और फिर ये तन्हाई से मिल जुल के भी रहती हैं ... अच्छी रचना ...

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  17. कोई याद तैयार नहीं थी तेरी
    इस दिल से जाने के लिए ...बहुत खूब...

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  18. ये यादें भी बड़ी संगदिल हुआ करती हैं ... सुन्दर प्रस्तुति!

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  19. यादे तो सच में मनको झकजोर के रख देती है ...बहुत सुन्दर !

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  20. यही जीवन है ....
    शुभकामनायें आपको !

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  21. बहुत सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर भावाभिव्यक्ति, बधाई.

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  22. विरोधाभाषों का समुच्चय आपकी इस कविता को अद्भुत बनाता है।

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  23. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  24. आज 08/04/2012 को आपका ब्लॉग नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक किया गया हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  25. वाह सदाजी! ....आपकी लेखनी ने जुबां को चुप कर दिया ....यह वाह तो दिलसे निकली है ....!!!

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  26. वह याद ही ऐसी थी .....
    शुभकामनायें आपको !

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  27. इक रूठी हुई याद ने
    इस कदर हंगामा कर दिया
    मेरे दिल का कोना
    फ़कत तनहाईयों के नाम
    कर दिया

    वाह!! बहुत सुंदर रचना.

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  28. कौन मनायेगा ?
    उस रूठी हुई याद को
    किससे पूछती ?
    लब खामोश थे जहां
    वहां जज्‍बात बेजुबान से
    दिल की सदा
    सुनने को कोई तैयार नहीं
    लाजवाब !!!

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  29. सुन्दर भावमय प्रस्तुति.
    सुनीता जी के दिल में अच्छा ख्याल आया हैं.
    क्या खूबसूरत अदाकारा हैं आप ?

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