सोमवार, 2 अप्रैल 2012

सुननी ही होगी आवाज ... वो !!!
















तुमने भागने का मन बना तो लिया है
पर खुद से कब तक भाग सकोगे
बहुत मुश्किल है
मैं कोई और नहीं ... तुम्‍हारी ही परछाईं हूँ
सुननी ही होगी आवाज ... वो !!!
जो दस्‍तक दे रही है दिल के दरवाज़े पर
जिसकी वजह से मन और बुद्धि  में
हो जाता है झगड़ा
फिर कसैला हो हर मधुर ख्‍याल
हिला देता है हर बुनियाद को
मन को हमेशा
अपनी 'मैं' का ही ख्‍याल होता है
और बुद्धि निसहाय हो जाती है
विवेक को जागृत करना
उतना ही आवश्‍यक है
जितना मन के 'मै' का मान रखना ...
मन पे लग़ाम तो
विवेक ही लगा सकता है
आदत ... याने नशा
फिर वह किसी भी काम का हो
आदत अच्‍छी है या बुरी
इसके लिए विवेक को
ध्‍यान से जोड़कर
उसकी सतह तक जाना ही
होता है तभी किसी नतीज़े पर
पहुंचा जा सकता है ...
यक़ीन रखो जिस दिन तुमने
ये कर लिया
तुम मुक्‍त हो जाओगे
भय से .. अवसाद से...
आंखे डालकर जि़न्‍दगी से बातें
कर सकोगे और पा सकोगे
कुछ लम्‍हे सुकून के ...

36 टिप्‍पणियां:

  1. आदत अच्‍छी है या बुरी
    इसके लिए विवेक को
    ध्‍यान से जोड़कर
    उसकी सतह तक जाना ही
    होता है तभी किसी नतीज़े पर
    पहुंचा जा सकता है ...
    यक़ीन रखो जिस दिन तुमने
    ये कर लिया
    तुम मुक्‍त हो जाओगे ... behad achhe bhaw

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  2. बहुत गहरी बात कही सदा जी....
    विवेक को
    ध्‍यान से जोड़कर
    उसकी सतह तक जाना ही
    होता है तभी किसी नतीज़े पर
    पहुंचा जा सकता है .

    बहुत बढ़िया..
    सस्नेह

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  3. वाह क्या बात है,

    तुमने भागने का मन बना तो लिया है
    पर खुद से कब तक भाग सकोगे
    बहुत मुश्किल है
    मैं कोई और नहीं ... तुम्‍हारी ही परछाईं हूँ
    सुननी ही होगी आवाज ... वो !!!

    बहुत सुंदर
    क्या कहने

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  4. हमारे अपने भय ही हमे डराते हैं।

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  5. तुमने भागने का मन बना तो लिया है
    पर खुद से कब तक भाग सकोगे
    बहुत मुश्किल है
    मैं कोई और नहीं ... तुम्‍हारी ही परछाईं हूँ
    सुननी ही होगी आवाज ... वो !!!

    बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति,बेहतरीन पोस्ट,....

    MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: मै तेरा घर बसाने आई हूँ...

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  6. गहन बहुत सार्थक ...सुंदर अभिव्यक्ति ...
    शुभकामनायें .

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  7. बहुत सुन्दर रचना...उत्तम प्रस्तुति!

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  8. मन को छूती हुई नज़्म....बधाई

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  9. मन को छूती हुई नज़्म....बधाई

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  10. हम खुद से कब तक भाग सकते हैं .... ये आवाज़ तो सुनानी ही होगी तभी भाय दूर होगा ...अच्छी रचना

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  11. bahut sundar ..aaj kal aapki hi arpita padh rahi hun ...behtreen bhaaw hai har kawita ke

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  12. मन पे लग़ाम तो
    विवेक ही लगा सकता है
    सुंदर रचना...
    सादर।

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  13. यक़ीन रखो जिस दिन तुमने
    ये कर लिया
    तुम मुक्‍त हो जाओगे
    भय से .. अवसाद से...
    आंखे डालकर जि़न्‍दगी से बातें
    कर सकोगे और पा सकोगे
    कुछ लम्‍हे सुकून के ...
    Kitna sach kah rahee hain aap!

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  14. waah! bahut hi umda rachna hai,bdhai aap ko

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  15. दार्शनिक-से भाव, उत्तम रचना, बधाई.

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  16. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर की गई है।
    चर्चा में शामिल होकर इसमें शामिल पोस्टस पर नजर डालें और इस मंच को समृद्ध बनाएं....
    आपकी एक टिप्‍पणी मंच में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान करेगी......

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  17. आवाज़ तो सुननी ही होगी...अच्छी रचना...../

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  18. वाह !!!!! बेहद खूबसूरत रचना,,बस पढ़ते ही गए जैसे की कोई कुछ बयान कर रहा है और आप अपने आप में नहीं....

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  19. खूबसूरत भाव..खूबसूरत नज़्म.. !!

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  20. सच कहा है ... विवेक से ही मन पे काबू किया जा सकता है ...
    उत्तम रचना है ...

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  21. हृदय की आवाज को नकार पाना बड़ा कठिन होता है।

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  22. मन को हमेशा
    अपनी 'मैं' का ही ख्‍याल होता है
    और बुद्धि निसहाय हो जाती है
    विवेक को जागृत करना
    उतना ही आवश्‍यक है
    जितना मन के 'मै' का मान रखना ...
    मन पे लग़ाम तो
    विवेक ही लगा सकता है

    ....बहुत सारगर्भित प्रस्तुति...सच में विवेक ही मन को काबू में रख सकता है...

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  23. यथार्थ को कहती सुंदर भावपूर्ण सार्थक अभिव्यक्ति बहुत खूब ....

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  24. अपने से बच कर कोई जायेगा भी तो कहाँ .,
    स्वयं से सामना करने में ही सारे समाधान हैं !

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  25. बहुत ही सुन्दर एवं सारगर्भित रचना । मेरे नए पोस्ट "अमृत लाल नागर" पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  26. विवेक तक की यात्रा झीनी और कठिन है लेकिन संभव और सुहानी है. सुंदर कविता.

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