कैसे रंग लेते हो शब्दों को
गेरुए रंग में
जहाँ हर पंक्ति रूहानी हो जाती है
और इनके अर्थ करने लगते हैं
परिक्रमा मन से मन तक
दूरियां सिमट कर
पलकों की छांव में
बस संदली हो जाती हैं !!
…
पोर-पोर उँगलियों का
भर उठता है खुशबु से
हँसते हुये कहा तुमने
मन पवित्र तो हर ओर
इत्र ही इत्र है ☺️
….
©
बहुत प्यारी रचना मन से मन तक ।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार प्रोत्साहन के लिये 💐💐
हटाएंपोर-पोर का जवाब नहीं
जवाब देंहटाएंरंगसाज जब कोई फूल बनाये और कागज ही महकने लग जाये..कुछ ऐसा अहसाज कराती रचना।
मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है 👉👉 लोग बोले है बुरा लगता है
जी शुक्रिया
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (21-10-2019) को (चर्चा अंक- 3495) "आय गयो कम्बखत, नासपीटा, मरभुक्खा, भोजन-भट्ट!" पर भी होगी।
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रवीन्द्र सिंह यादव
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 22 अक्टूबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजी बेहद शुक्रिया
हटाएंलाज़बाब पंक्तियाँ। बधाई!!!
जवाब देंहटाएंआभार आपका
जवाब देंहटाएंरूमानी और रूहानी भी ...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत से एहसासों को समेटे ,हुए गेरुए रंग में ख्यालों को डुबोये हुए मन को बींधती हुई रचना ... बहुत शानदार लिखा आपने..
जवाब देंहटाएंपोर-पोर उँगलियों का
जवाब देंहटाएंभर उठता है खुशबु से
हँसते हुये कहा तुमने
मन पवित्र तो हर ओर
इत्र ही इत्र है
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब कृति।
अति सुंदर रचना दी भाव मन छू रहे।
जवाब देंहटाएंहँसते हुये कहा तुमने मन पवित्र तो हर ओर इत्र ही इत्र है वाह!!! बहुत ही लाजवाब
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