लम्हा-लम्हा करीब आता काल,
शिथिल तन,
कुछ न कह पाने की विवशता
पलकों की कोरों से
बहती रही
सब पास थे चाहते औ’ ना चाहते हुये भी
पर दूर थी सबसे वो ‘गुड्डी’
जो बचपन में हर पल
झगड़ती थी, झिड़कती थी
उसकी जि़द देख
कितना डपटती थी उसे ‘बा’
उम्र के साथ-साथ
उसका झगड़ना स्नेह में बदल गया,
झिड़कना उसका कब
देखभाल में तब्दील हो गया
अस्सी की उम्र में ‘बा’
शिथिल हुई, अंतिम समय आया
उम्र के आखिरी पन्ने पर
जाने का समय द्वार पे दे रहा था दस्तक़
पर ‘बा’ बंद पलकों में उसका अक्स लिये
प्रतीक्षारत थीं, लड़ती रही अंतिम समय भी
काल से, ये कहते हुये
ज़रा ठहरो ! “वो आती होगी”
दूर रहत है न,
सांसे अटकतीं, उखड़ती, फिर चलने लगतीं
रात दस बजे वो आई,
पायल की रूनझुन कानों में पड़ते ही
बंद पलकें खुलीं
आँसुओं से भीगा चेहरा लिये,
’बा’ के सामने थी ‘गुड्डी’
उसकी कोमल हथेलियों का स्पर्श
मिलते ही, प्रतीक्षा की घडि़या समाप्त हुईं
द्वार पर फिर दस्तक़ हुई,
’बा’ अंतिम बेला में मुस्काई
तुम नहीं मानोगे ले चलो
मेरी गुड्डी आ गई
अब मैं चलती हूँ
पलकें खुली रह गईं,
जाते वक़्त भी उसका चेहरा
आँखों में, हथेलियों का स्पर्श अपने साथ ले
बिना कुछ कहे भी
कितना कुछ गईं थीं ‘बा’
....
अन्दर तक झकझोर देने वाली अभिव्यक्ति है.. क्या कहूँ.. इतने दिनों बाद आपका लिखा पढने को मिला और वो भी ऐसे दु:ख भरे सन्देश के साथ.. मन भर गया!!
जवाब देंहटाएंगहराई तक उतरती पंक्तियाँ......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (09-01-2014) को चर्चा-1487 में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मन सजग हो जाता है, स्नेह भर जाता है, क्षमा मुखरित होने लगती है, जब समय शेष होना रोक देता है।
जवाब देंहटाएंनिःशब्द करती रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : सांझी : मिथकीय परंपरा
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आपका-
बहुत मर्मस्पर्शी !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट लघु कथा
आँखें नम हो गई ... अंत आते आते ...
जवाब देंहटाएंमर्म को छूते हुए शब्द ...
दिल को छू लेने वाली अत्यंत संवेदन शील रचना सदा जी ...आभार
जवाब देंहटाएंह्रदय भींग रहा है...
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन कहीं ठंड आप से घुटना न टिकवा दे - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंदिल को छू लेने वाली सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं:
जवाब देंहटाएंबहुत मर्मस्पर्शी रचना...आँखों को नम कर गयी ....
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंआँखें नम हो गईं
भाव-प्रवण-सच्चाई ।
जवाब देंहटाएंजाते वक़्त भी उसका चेहरा
जवाब देंहटाएंआँखों में, हथेलियों का स्पर्श अपने साथ ले
बिना कुछ कहे भी
कितना कुछ गईं थीं ‘बा’
मर्म को छूते हुए शब्द .... संवेदन शील रचना सदा जी
उम्र के आखिरी पन्ने..
जवाब देंहटाएंबहुत ही संवेदनशील रचना...
उस मधुर असीम मिलन में
जवाब देंहटाएंहैं चीर वियोग के कण कण ...
हृदय स्पर्शी अनुपम अभिव्यक्ति ....!!
अत्यंत भाव विगलित करती रचना ! मन भारी एवँ आँखें सजल कर गयी ! बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंहृदय स्पर्शी....
जवाब देंहटाएंamit chap chodne walee rachana
जवाब देंहटाएंtouchy
जवाब देंहटाएंऐसी ही घटना थी जब हमारी नानी अपनी अंतिम घडी में हमारी मम्मी (उनकी सबसे छोटी बेटी ) की राह देख रही थी, जो नहीं पहुच सकी वहाँ, और उनकी चचेरी बहन शांति उन्हें देखने आई मम्मी का नाम कान्ति था, शायद उन्हें शांति कि जगह कान्ति सुनाई दिया, और वे हमेशा के लिए शांत हो गईं... पलकें भिगो देती हैं कुछ यादें... हृदयस्पर्शी
जवाब देंहटाएंबिलकुल ऐसा ही मेरे साथ हुआ..माँ मेरी राह देख रही थीं दूर थी मै सबसे..पर देख कर हंसने लगीं ताली भी बजाई...कुछ कह नहीं सकती थीं..कागज मंगवाया कुछ शब्द लिखे..और कुछ ही दिन बाद विदा हो गयीं
जवाब देंहटाएंबहुत गहन |
जवाब देंहटाएंह्रदयस्पर्शी।
जवाब देंहटाएंबेहद मर्मस्पर्शी।।।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपका मैं अपने ब्लॉग ललित वाणी पर हार्दिक स्वागत करता हूँ मैंने भी एक ब्लॉग बनाया है मैं चाहता हूँ आप मेरा ब्लॉग पर एक बार आकर सुझाव अवश्य दें...