शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

प्रेम !!!!!

प्रेम एक प्रार्थना है
जिसके पीछे सब हैं कतार में
कोई शब्‍दों से व्‍यक्‍त करता है
तो कोई मौन रहकर
प्रेम
बंसी के बजने में हो जाता है
धुन मीठी
तो कई बार हो जाता है प्रेम
विष के प्‍याले में अमृत
...
प्रेम एक आहट है
जो बिना किसी पद़चाप के
शामिल हो जाता है जिंदगी में
धड़कनों का अहसास बनकर
प्रेम विश्‍वास है
जब भी साथ होता है
पूरा अस्तित्‍व
प्रेममय हो जाता है
....
प्रेम जागता है जब
नष्‍ट हो जाते हैं सारे विकार
अहंकार दुबक जाता है
किसी कोने में
क्रोध के होठों पर भी
जाने कैसे आ जाती है
एक निश्‍छल मुस्‍कान
प्रेम का जादू देखो
लोभ संवर जाता है
इसकी स्‍मृतियों में
....
ऐसी ही घड़ी में होता है
जन्‍म करूणा का
जहां प्रेम हो जाता है नतमस्‍तक
वहाँ दृष्टि होती है
सदा ही समर्पण की
समर्पण सिर्फ एक ही भाव
भरता है कूट-कूट कर
मन की ओखल में
विश्‍वास की मूसल से
जिनमें मिश्रित होते हैं
संस्‍कार परम्‍पराओं की मुट्ठी से
जो एक ताकत बन जाते हैं
हर हाथ की
तभी विजयी होता है प्रेम
उसके जागने का, होने का,
अहसास सबको होता है
नहीं मिटता फिर वो
किसी के मिटाने से
.... 

16 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम को परिभाषित करती अति उत्तम रचना ....
    :-)

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  2. प्रेम का नाम लेने से ही सबकुछ प्रेममय हो जाता है .......
    खुबसूरत रचना !

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  3. बहुत सुंदर रचना.
    टेक्स्ट कलर धुंधले हो गए हैं.सम्पादित कर लें.

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  4. प्रेम को परिभाषित करना बहुत कठिन काम है परन्तु आपके शब्दों में काफी पकड़ है |बहुत अच्छा लगा !
    नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )

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  5. क्रोध के होठों पर भी होती है निश्छल मुस्कान , प्रेम ऐसा ही होता है … सच में !
    भावपूर्ण !

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  6. प्रेमानुभूति से लबरेज़ रचना

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  7. प्रेम के अलग अलग बिन्दु पर सभी एक ही बात कहते ... प्रेम की गहराई नापते ...
    लाजवाब रचना ...

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  8. प्रेम को खूबसूरती से प्रस्तुत किया है .........खूबसूरत रचना

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  9. बहुत खूब !!
    फॉण्ट का रंग बदलें , या बैकग्राउंड रंग बदलिए , पढने में समस्या !!

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  10. समर्पण सिर्फ एक ही भाव
    भरता है कूट-कूट कर
    मन की ओखल में
    विश्‍वास की मूसल से
    जिनमें मिश्रित होते हैं
    संस्‍कार परम्‍पराओं की मुट्ठी से
    जो एक ताकत बन जाते हैं
    हर हाथ की............. बहुत सुन्दर !!!
    फॉन्ट कलर के लिए मैं भी कहना चाहती थी

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