बुधवार, 23 मई 2012

संकल्‍प यात्रा में ... !!!













सबकी बोलती बंद
सब निरूत्‍तर हो जाते हैं
पता है क्‍यूँ ?
सबके अपने-अपने सच होते हैं
पर सब तुम्‍हारे सच के आगे
खुद को बौना महसूस करते हैं
झांकने लगते हैं इधर-उधर
जब तुम कह देती हो
खरा-खरा बिना लाग -लपेट किए
... कुछ तो तुम्‍हारा सामना करने से भी
कतराते हैं 
अभी आते हैं ... कहकर
आगे बढ़ जाते हैं
उनका वह अभी फिर कभी नहीं आता ...
और न ही वे ... कर पाते हैं तुम्‍हारा सामना
न तो तुमने कभी पढ़ा
ज़ल तू ज़ल़ाल आई बला का टाल तू ...
न ही कोई टोटका किया
अपनी जीत का
न अफ़सोस मनाया अपनी पराज़य का
....
कर्मप्रधान विश्‍वकरि राखा
जो जस करिय सो तस फल चाखा
के भावों को मन में संजोकर
कर्तव्‍य से कभी
विमुख नहीं हुआ तुम्‍हारा मन
वो हम सबके पालन का हो
ज्ञान का हो अथवा शिक्षा का
तुम संस्‍कारों की स्‍लेट पर
हमारे वर्तमान का सच लिखकर
भविष्‍य के लिए सचेत कर
सबके चेहरों का
सच पढ़ना सिखाती रही
उसी का परिणाम है यह
हम विषम परिस्थितियों में भी
सच के साथ अन्‍याय के खिलाफ़ हो
एक जुट हो संकल्‍प यात्रा में
भीड़ के साथ - साथ चलते हुए भी
अनुसरण करते हैं तुम्‍हारा ही ... !!!

33 टिप्‍पणियां:

  1. वाह..कर्तव्यनिष्ठ होकर आगे बढ़ने की सुंदर यात्रा..बहुत खूब !!

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  2. खरा सत्य बरबस खले, चले सरलतम चाल |
    सुन्दर लगता दिन ढले, रविकर नेह सँभाल |

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  3. तुम संस्‍कारों की स्‍लेट पर
    हमारे वर्तमान का सच लिखकर
    भविष्‍य के लिए सचेत कर
    सबके चेहरों का
    सच पढ़ना सिखाती रही

    वाह...इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  4. बहुत भाव पुर्ण अच्छी अभिव्यक्ति की सुंदर रचना ,,,,,,,,

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  5. मार्ग सचेतक हमारे मन में संस्कार रूप में बैठ कर ऐसे ही कार्यशील रहता है. उसके प्रति विश्वास की कोई सीमा नहीं होती. बहुत सुंदर रचना.

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  6. बहुत सुंदर सदा.....
    बहुत भावपूर्ण रचना.

    सस्नेह.

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  7. न ही कोई टोटका किया
    अपनी जीत का
    न अफ़सोस मनाया अपनी पराज़य का
    .........आगे बढ़ने की सुंदर यात्रा
    बेहतरीन रचना!
    यही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!

    संजय भास्कर

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  8. एकदम खरी बात कही है...
    सुन्दर उत्कृष्ट रचना:-)

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  9. वाह कितनी सरलता से सत्य कहा है यूँ लगा जैसे मेरे लिये ही लिखा गया है।

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  10. ॠणानुवाद के उन्नत भाव संजोए है!!

    श्रद्धा है………
    कर्मप्रधान विश्‍वकरि राखा
    जो जस करिय सो तस फल चाखा

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  11. स्वगत कथन अंदाज़ में अच्छी प्रस्तुति .बधाई .
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    मंगलवार, 22 मई 2012
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  12. बहुत सुन्दर सटीक अभिव्यक्ति...सदा जी सस्नेह...

    जवाब देंहटाएं
  13. कहते हैं - आह से उपजा होगा गान ... जो जितना सहता है , खोता है , वह उतना ही खरा होता है . यह रचना मील का खरा पत्थर है

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  14. सबके अपने-अपने सच होते हैं
    यकीनन .. सुन्दर रचना

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  15. म विषम परिस्थितियों में भी
    सच के साथ अन्‍याय के खिलाफ़ हो
    एक जुट हो संकल्‍प यात्रा में
    भीड़ के साथ - साथ चलते हुए भी
    अनुसरण करते हैं तुम्‍हारा ही ... !

    बहुत भाव पूर्ण रचना ...अगाध श्रद्धा दिखाई पड़ रही है

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  16. आपकी पोस्ट 24/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा - 889:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  17. इसे ही संस्कार कहते हैं...कोई कुछ करे हम तो भला ही करेंगे...
    ऐसे लोगों को सहना तो पड़ता है फिर कद्र भी उनकी ही होती है..
    बेहतरीन रचना!

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  18. माँ का एक अलग रूप उकेरा है ..अब तक एक वात्सल्यमयी माँ को ही पढ़ते रहे.....लेकिन एक गुरु के रूप में भी कितना योगदान रहता है उसका हमारे जीवन में ...उसीके दिए संस्कार तो हम जीते हैं ....उनका अक्षरश: अनुसरण करते हैं ....बहुत प्यारी कविता सदाजी

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  19. कम होती हैं ऐसी शक्सियत ... आशा भरी पोस्ट ...

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  20. तुम संस्‍कारों की स्‍लेट पर
    हमारे वर्तमान का सच लिखकर
    भविष्‍य के लिए सचेत कर
    सबके चेहरों का
    सच पढ़ना सिखाती रही

    ...बचपन के संस्कार ताउम्र साथ देते हैं...बहुत सुन्दर रचना...

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  21. ये संस्कारों की धरोहर है ....सदा साथ चलेगी !
    शुभकामनाएँ!

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  22. माँ का एक अलग सा सुंदर रूप ।

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  23. वाह बहुत खूब सदा जी उम्दा भावपूर्ण अभिव्यक्ति "सलूजा" अंकल कि बात से सहमत हूँ।

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  24. sada ji
    bachpan ke mile sanskaar hi hammare bhavishhy ki niv hote hain.
    तुम संस्‍कारों की स्‍लेट पर
    हमारे वर्तमान का सच लिखकर
    भविष्‍य के लिए सचेत कर
    सबके चेहरों का
    सच पढ़ना सिखाती रही
    bahut hi behtreen panktiyan
    badhai
    poonam

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